वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 29 अंकों में आपने पढ़ा : प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात को जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर आंख मिचौली के किस्से चलने लगे और उसी दबंगाई से पहुंचाया गया जवाबी खूबसूरत प्रेम पत्र पढ़कर मैं अपने होश खो बैठा . होश तब दुरुस्त हुए जब तुमसे फोन पर बात हुई . तुम्हारी एक झलक व दूर से मुलाकार की बात कर मैं समय पर नहीं पहुंच पाया . इससे हुई, तुम्हारी नाराज़गी को दूर करने के लिये फोन पर बातचीत हुई , नाराज़गी तो दूर हो गई पर दिल बैठाने वाली बातें होने लगीं . अब आगे ..)
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 30 )
अब तुम्हारी बारी थी जवाब देने की . वैसे मैंने , तुमसे , कोई फिल्मी गीत के बोल या किसी गज़ल के शेर , वापसी में सुनने की आशा की थी पर तुमने स्वरचित शेर सुना , यहां पर मुझे मात दे दी. तुम बोली –
ये आरज़ू नहीं तुम भी , मुझे चाहो दिल से,
है ये ख़्वाहिश , मेरी चाहत पे एतराज़ न करो
मुझे कुछ भी ना सूझा तो मैंने पिछली गज़ल का एक और शेर कह दिया –
मिलने की लगन सच्ची हो अगर ,धुन चाहत की पक्की हो अगर
किस्मत का लिखा टल जायेगा, एक दिन ऐसा भी आयेगा
फिर शेर-ओ-शायरी का एक दौर सा चल पड़ा . कुछ स्वरचित , तो ज़्यादातर पढ़ी-सुनी हुई गज़ल या फिल्म से . लगभग एक घंटा हो गया हमें बातें करते पर मन नहीं भर रहा था .
अब मैंने कुछ रुकते हुए सवाल पूछा , मलिका . यह सब कब तक चलते रहेगा ? वह गम्भीर होते हुए बोली , अब आपको मेरे घर आकर मेरे घर वालों से भी मिलना होगा . मैं उसकी बात को मज़ाक़ में लेते हुए बोला, शायद तेरी शादी का खयाल दिल में आया है , इसीलिये मम्मी ने तेरी मुझे चाय पर बुलाया है . पर वह गम्भीर ही रही और बोली , ध्रुव . यह छुप छुप के आंख मिचौली बहुत हुआ . अब खुद से डर लगने लगा है और ज़माने से भी . कल कोई मेरे घर कुछ भी बताए , इससे पहले मैं चाहती हूं कि आप , एक बार, मेरे घर आयें और मैं आपको सबसे मिलाऊं . मैं फोन पर भी लगभग कांपते हुए बोला , जैसा तुम कहो . वैसे अभी हम दोनों किसी तरह के कमिटमेंट को तैयार नहीं थे फिर अचानक बिना आमने सामने बात किये , सीधे फोन पर वह मुझे घर का न्यौता दे रही थी . वह अचानक पहले की तरह खनकती हुई हंसी और बोली , घबराते क्यों हो बुद्धु राम . अरे, उस मुलाकात के पहले भी एक मुलाकात करनी होगी ना . अब मैं फिर से उससे अकेले में मिलने की बात सुनकर रोमांचित होकर बोला, वही होगा जो मंज़ूरे मलिका होगा . वह फिर से अदा देते हुए बोली, मलिका को बांदी बनाने का हुनर तो आपको आता है , हुज़ूर . मैं बोला , उस हसीन मुलाकात के पहले
अब जुदाई के मेरे सफ़र को आसान करना
तुम मुझे ख़्वाब में आकर न परेशान करना
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स