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Saturday, June 14, 2025
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वो ख्वाबों के दिन (भाग – 29)

वो ख्वाबों के दिन  

( पिछले 28 अंकों में आपने पढ़ा : प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले,  दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात को जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर आंख मिचौली के किस्से चलने लगे और उसी दबंगाई से पहुंचाया गया जवाबी खूबसूरत प्रेम पत्र पढ़कर मैं अपने होश खो बैठा . होश तब दुरुस्त हुए जब तुमसे फोन पर बात हुई . तुम्हारी एक झलक व दूर से मुलाकार की बात कर मैं समय पर नहीं पहुंच पाया . इससे हुई, तुम्हारी नाराज़गी को दूर करने की कोशिश की .अब आगे ..)

एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….

(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 29 )

मुझे लगा कि मेरी इस तरह से गुज़ारिश करने से तुम मन ही मन मुस्कुराने लगी हो . मैं अब मिन्नत करते हुए बोला, नाराज़ हो गई ? तुमने भी तो आज सुबह नहीं आकर बदला ले लिया . अब वही चिर – परिचित खिलखिलाहट सुनाई दी , तो मेरा बदला अपने आप ही हो गया ? मैं तो कल रात परिवार के साथ बाहर थी . अभी कुछ देर पहले पहुंचे हैं . मैं थोड़ा सा सावधान होते हुए बोला , तो क्या तुम्हारे आस-पास कोई है ? तुम बोली , नहीं है पर बुलाती हूं . फिर एक सुरीला आलाप सुनाई दिया , भाभी…….. ओ भाभी . मैं घबरा कर बोला , अभी मत बुलाओ . मैं फोन रखता हूं . उसी तत्परता से जवाब आया , क्यों डर रहे हो ? घर पर कोई नहीं है . आज लाइन क्लियर है . अब मैं भी मस्ती में छेड़ते हुए बोला , तो क्या मैं तुम्हारे गाल के रसगुल्ले को खाने आ जाऊं ? तुरंत उतना ही बोल्ड जवाब मिला, जल्दी आ जाओ . आप चाहो तो मैं रसगुल्ले के ऊपर चॉकलेट की लेयर चढ़ा कर रखती हूं . अभी मैं चॉकलेट ही खा रही हूं . मैं बोला , सोच लो . फिर बाद में मत कहना कि मैंने दूसरी बार सोचने का मौका नहीं दिया . तुम जान बूझकर इतराते हुए ज़िद के साथ बोली, आइये ना , अब आ भी जाइये ना ! मेरी फट गई , इस तरह अकेले उसके घर जाना और पकड़ा गये तो फिर उसका-मेरा क्या होगा? मैं घबराते हुए बोला , सचमुच , आना ज़रूरी है . फिर कभी ? अब तुम पूरी तरह से खिलखिला कर हंस पड़ी . बोली, अरे बाबा, मैं तो यूंही मज़े ले रही थी. आपको यदि अकेले में घर बुलाना है तो सबसे पहले आपको मेरे घर के लोगों से इंट्रोड्यूस करना होगा . उसके पहले यह ठीक नहीं होगा . मेरी जान में जान आयी. मैं अपनी सांसें संयत करते हुए बोला , देखो मलिका. ऐसा कब तक  चलेगा ? तुम दूर के ढोल ही बनकर मुझे ललचाती रहोगी और पास आने पर मेरी भावनाओं पर लगाम लगाती रहोगी . अब तुम्हारे डायलॉग ने मुझे घायल कर दिया . तुम बोली , कौन कमबख्त तुम्हें दिल में छुपा कर रखना चाहता है , मैं तो तुम्हें सीने से लगाना चाहती हूं . हम दोनों को मालूम था कि हम ‘दूर से देखो छूना नहीं ‘ वाला खेल खेल रहे हैं . मैं गहरी सांस लेते हुए एक गज़ल के लाइनें बोल उठा –


दिल गीत खुशी के गायेगा एक दिन ऐसा भी आयेगाएक चांद हमारी बाहों में , एक चांद अन्धेरी रातों में 

इक दूजे से शरमायेगा , एक दिन ऐसा भी आयेगा 

( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )  

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक , 

दैनिक पूरब टाइम्स 

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