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Wednesday, May 14, 2025
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वो ख्वाबों के दिन (भाग – 27)

वो ख्वाबों के दिन 

( पिछले 26 अंकों में आपने पढ़ा : प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले,  दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात को जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर आंख मिचौली के किस्से चलने लगे और उसी दबंगाई से पहुंचाया गया जवाबी खूबसूरत प्रेम पत्र पढ़्कर मैं अपने होश खो बैठा था. होश तब दुरुस्त हुए जब तुमसे फोन पर बात हुई .अब आगे ..)

एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….

(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 27 )

मुझे मालूम था कि आप फोन करेंगे ही इसलिये बिना खाये पिये बस फोन के पास , जोगन की तरह धूनी रमाये बैठी थी . फिर बिना वजह ज़ोर से हंस पड़ी . मैंने पूछा , यह क्या है ? तुमने अद्भुत जवाब दिया , मैंने  खुद से शर्त लगा रखी थी कि आप फोन ज़रूर करेंगे .  मैं जीत गई और वह हार गई . मैंने पूछ लिया , वह कौन ? फिर से हंसती हुई तुम बोली , तुम्हारे –मेरे भीतर का चोर .

दिले नादां चुप हुआ,  दिल खोलकर रो रोकर

न जाने कौन है जो रातों में मुझमें छुपकर सिसकता है

 अब मैं भी उदासी की खुमारी से बाहर आते हुए मस्ती में बोल पड़ा . चोर से क्यों कॉम्पीटीशन करना पड़ा, इस डकैत को . खुले आम दिल की डकैती करने वाली को . तुम मस्ती में झूमते हुए बोली , वही तो . मेरे मन के भीतर , अपने आप के प्रति , एक शर्मिंदगी  का भाव जागने लगा था. सोचती थी कि आप भी क्या सोचते होंगे मेरे बारे में ? बड़ी बड़ी बातें करती थी , दोस्ती और प्यार के बीच के फर्क़ को स्पष्टता से बताने के लिये और फिर खुद ही फिसल गई . मैं बीच में ही टोकते हुए बोला , फिसली नहीं  बल्कि रपट गई और मुझे भी साथ में रपटा लिया . तुम मुस्कुराई और बोली , हां वही . पर बताइये , मैंने कभी आपसे आमने सामने एक अच्छे दोस्त से ज़्यादा की नज़दीक़ी दिखाई ? नहीं ना . तो बस , अब ऐसे ही चलने देते हैं . अब मैं थोड़ा सा संजीदा होते हुए बोला , क्या तुमको ऐसा नहीं लग रहा है कि हम इस मीठी कसक की लालच में खुद को धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं  ?  आखिर यह कब तक चलेगा ? अब तुम भी लगभग रुंआसी सी होकर बोली , जानती हूं ‘जान’ , पर इस बार सचमुच मेरी जान पर बन आयी है . हम जब तक चला सकें तब तक . अब थोड़े दिनों की तो बात है . हम कोशिश करते हैं कि आमने सामने हम केवल अच्छे दोस्त रहें जिसे प्यार मोहब्बत से कोई सरोकार नहीं है . और चिट्ठियों व फोन में आशिक़ – माशूक़ की तरह . मैं बोला , सचमुच , मेरा दिल भी यही चाह रहा था क्योंकि हमारे रास्ते जल्द ही अलग अलग होने हैं  . फिर ऐसा ना हो कि बिछुड़ने का दर्द , नासूर बनकर हमें सताए . कितना भी ज़ोर लगा लें , अब हमारे बीच का सबकुछ इम्बैलेंस हो रहा है . तुम फिर हंस पड़ी और बोली , तो जनाब आप अब ज़ोर लगाने लगे हैं , सबकुछ ठीक करने के लिये .  पर जो हो रहा है वह ख्वाब नहीं हक़ीक़त है . सो हमें मिलकर इस बात का सामना करना ही पड़ेगा . ना जाने मुझे क्यों लगा कि तुम बाहर से हंस रही हो पर अन्दर से रो रही हो . मैं टॉपिक बदलते हुए पूछ बैठा , वो सब तो छोड़ो , यह बताओ , आज मिठाई का रंग क्या है ? चहकते हुए तुमने जवाब दिया , नैवी ब्ल्यू स्कर्ट पर पीच कलर का टॉप पहने हुई है तुम्हारी मिठाई . क्या तुम उसे देखना चाहोगे ? मैं भी हंसते हुए बोला, सिर्फ देखना ही नहीं बल्कि अपनी नज़रों के भीतर बिठाना चाहूंगा . फोन रखकर मैं तीर की तरह तुम्हारे घर की तरफ निकल पड़ा तुम्हारी एक झलक पाने को . मुझे अपने फर्स्ट इयर में देखी एक फिल्म का एक गाना याद आ रहा था …


मैं जाऊं आगे ये ले जाए पीछे दिल मेरा ये अनाड़ी है  

दिल दीवाना बड़ा मस्ताना , बड़ा पगला है,  बड़ा बेगाना 

( अगले हफ्ते आगे का किस्सा ) 

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,

दैनिक पूरब टाइम्स

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