वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 25 अंकों में आपने पढ़ा : प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात को जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर आंख मिचौली के किस्से चलने लगे और उसी दबंगाई से पहुंचाया गया जवाबी खूबसूरत प्रेम पत्र पढ़्कर मैं अपने होश खो बैठा . अब आगे ..)
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 25 )
ऐ मेरे हमनशीं , आपकी बातें , अपने आप से करने में बहुत मज़ा आ रहा है . वक़्त की रफ्तार कभी बहुत तेज़ लगती है तो कभी बेहद धीमी . पता नहीं क्यों आपको यह सब बता रही हूं ? इश्क़, मुहब्बत , प्यार , लव , नाम की इन चिड़ियों का मज़ाक़ उड़ाने वाली मैं अब खुद पंख लगाकर उड़ने लगी हूं. कभी कभी मन करता है कि रियल लाइफ की बंदिशें तोड़कर, रील लाईफ की तरह फिल्मीं हो जाऊं और आपके साथ पार्क में पेड़ों के चारों ओर चक्कर लगाते हुए कोई रोमांटिक गाना गाऊं या फिर तन्हाई में अपने बेड पर उलट पुलट करते आपको अपने गीतों में गुनगुनाऊं . मुझे हक़ीक़त से बेहतर ख्वाबों की दुनिया लगने लगी है . यह कैसा रोमांच जगा दिया है आपने मुझमें ? पर अब मुझको रुकना होगा , कल की हसीन मुलाक़ात के लिये , रूबरू होकर आपकी शरारती बात के लिये .
कितना पसंद करते हैं तुम्हें दिल से , लफ्ज़ों के सहारे कैसे बताऊं
तन्हाई में कभी हंसते हैं कभी रोते , उसकी गवाही कहां से लाऊं
अंत में एक रिक्वेस्ट है आपसे , इस खूबसूरत रोमांच को मै संजो कर रखना चाहती हूं इसलिये आमने सामने भले ही हम बेहतरीन दोस्तों की तरह बर्ताव करें पर चिट्ठी और फोन पर आप मुझे माशूक़ होने का अहसास दिलायें , प्लीज़ मेरे आशिक़ बनें रहें .
आपके खूबसूरत दिल पर राज करने वाली – मलिका
तुम्हारा खत पढ़कर मैं सपनों के मीठे समंदर में खो गया परंतु जैसे ही हक़ीक़त के धरातल पर उतरा , उहापोह में पड़ गया . पास रहने पर मैं तुम्हारा सबसे अच्छा दोस्त रहूं और दूर रहने पर तुम्हारा दीवाना प्रेमी . यह कैसी अजब सी दास्तान हो रही थी मेरी ज़िंदगी में ? पर अब क्या कह सकता था , यह तो हमारी दोस्ती की शुरुआत में ही तय हो चुका था . ज़ज़्बातों की ज़बर्दस्त आंधी ने मुझे झंझावत कर दिया था .
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
फिर सोचा अभी तो दूर हूं , अभी तो तुम्हारी सोच के मज़े ले लेता हूं. तुम्हारी अदाओं के बारे में सोचने लगा तो खुद ही मुस्कुराने लगा . मलिका , मैं बैठकर सोचने लगा कि तुममें सब कुछ है जोकि एक माशूक में होना चाहिये .
अगर मैं एक्ज़ामिनर होता तो देता नंबर दस में दस
अदाओं के, नज़ाक़त के, मोहब्बत के अलग देता
ना जाने कितनी बार मैंने तुम्हारे खत को पढ़ा और उसके एक एक शब्द के कई अर्थ निकालने की कोशिश करने लगा . इतनी कोशिश कोई किसी कविता के अर्थ निकालने के लिये भी नहीं करता होगा . फिर सोचा , अब आगे क्या ? हमने अपने दिलों के तार को तो झनझना दिया था पर अब इससे ज़्यादा आकर्षण हमारे जीवन में भूचाल ला सकता था . फिर मैंने सोचा कि अब एक दूसरे से मिलते ही नहीं , कुछ दिनों एवॉइड करने से शायद भावनाएं स्थिर हो पायें फिर आगे की बात करेंगे . पर यह सोचकर भी मुझे रोना आ गया . आज बिना तय प्रोग्राम के मैंने तुम्हें 3 बजे फोन करने का सोचा . बूथ से घंटी मारी तो पहली रिंग के साथ तुम्हारी सांसो की आवाज़ आई . मैने कहा कि मैं हूं . तुम बोली , पता है . मुझे मालूम था कि आप फोन करेंगे ही इसलिये बिना खाये पिये बस फोन के पास , जोगन की तरह धूनी रमाये बैठी थी . फिर बिना वजह ज़ोर से हंस पड़ी . मैंने पूछा , यह क्या है ? तुमने अद्भुत जवाब दिया , मैंने खुद से शर्त लगा रखी थी कि आप फोन ज़रूर करेंगे . मैं जीत गई और वह हार गई . मैंने पूछ लिया , वह कौन ? फिर से हंसती हुई तुम बोली , तुम्हारे –मेरे भीतर का चोर .
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स