वो ख्वाबों के दिन
( पिछले 24 अंकों में आपने पढ़ा : उस बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की पर अचानक दीदार देने वाली उस नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती के पीछे महीनों मेहनत करने के बाद , इशारों इशारों में उसके जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया था . प्यार की पहली मुलाकात पर शर्त के कारण मिले, दिल को सुकून और दर्द को उकेरते हुए , पहले प्रेम पत्र में दिल के जज़्बात और उसे जोखिम उठा कर सही हाथों में पहुंचा दिया . फिर आंख मिचौली के किस्से चलने लगे और उसी दबंगाई से पहुंचाया गया जवाबी खूबसूरत प्रेम पत्र , पिछले अंक के आगे )
एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….
(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 25 )
ध्रुव , मेरे यार ,
मेरे शानदार यार ,
आपको ढेर सारा प्यार ..
मुझे आपकी शरारत , आपके संजीदा अंदाज़ से बहुत बेहतर लगा . मैं अपने को एक स्ट्रेट फॉर्वर्ड व कड़क मिजाज़ मानती थी पर आपकी छेड़छाड़ से मेरे अन्दर भी एक शरारती युवती अंगड़ाई लेने लगी . मुझे बहुत मज़ा आ रहा है , मेरे यारा.
नज़र बचा के सबसे, जब से , हम सँवरने लगे,
आईना , जान गया , हम भी इश्क़ करने लगे
आपकी चिट्ठी को लेकर बैठी हूं और मुस्कुरा रही हूं . ऐसा लगता है खुद के ऊपर भी मेरा हक़ खत्म हो गया है . अपनी सहेलियों के बीच मैं बेपरवाह सी होकर इश्क़-मोहब्बत के नाम का मज़ाक़ उड़ाया करती थी पर अब शायद ही फिर वैसा कर पाऊं . मुझे अब लगने लगा है कि मैं भी वह गुनाह बेलज़्ज़त करने लगी हूं . जगजीत सिंह की गज़लों की मैं बेहद बड़ी प्रशंसक थी पर आज पहली बार उन्हें सुनते हुए लगा कि मैं उन लफ्ज़ों की दीवानी होने लगी हूं . ‘इश्क़ में गैरते ज़ज़्बात ने रोने ना दिया ‘ , वाह क्या खूबसूरत लाईन है. पर सचमुच , आपके ख्याल ने मुझे अभी तक यानि सुबह के तीन बजे तक सोने नहीं दिया . आंखें बंद कर फिर सोचती हूं कि मुझे कुछ भी लिखने से अच्छा , आपके बारे में सोचना लग रहा है , तभी तो पिछले 4 घंटों में केवल चन्द लाईनें लिख पाई हूं . जानती हूं , मुझे आपसे आज मिलना है और किसी भी तरह से यह खत पहुंचाना है पर आपके बारे में सोचकर जो मीठी गुदगुदी मेरे मन को हो रही है , उसका अहसास अद्भुत है . यह बिल्कुल सच है कि आपसे अच्छी आपकी यादें हैं जो पूरी तरह से मेरे कब्ज़े में हैं . फिर अचानक होश आता है कि हम अपनी दोस्ती को आगे बढ़ाने का खतरनाक खेल खेल रहे हैं , अधूरी आस जगा रहे हैं जोकि अभी किसी भी तरह से संभव नहीं है . मेरी आंखें भर आई हैं , हमारी तयशुदा जुदाई के बारे में सोच कर . फिर अपने कमरे की बंद घड़ी की तरफ देखती हूं तो अहसास होता है कि बन्द घड़ी का भी दिन में दो बार सही समय आता है. क्या ऐसे ही आगे चलकर हमारी आपकी कहानी में सही समय आयेगा ? सोच रही हूं तो ऐसा लग रहा है कि समुंदर के किनारे खड़ी हूं और भावनाओं की बड़ी लहर आ –आकर मुझे डुबाने की कोशिश कर रही है पर मैं ना जाने क्यों उन लहरों के साथ वापस खींचकर डूब नहीं रही हूं . पलटकर देखती हूं तो आप शरारती मुस्कान के साथ मेरा हाथ थामे हुए खड़े हैं , अटल . हर मुसीबत की लहर में डूबने से मुझे बचाते हुए .
इतने दिनों , इतने लम्हों से खामोश था
तुमसे बात हुई , तो दिल शरारत करने लगा
लापता जज़्बात ढूंढ कर मोहब्बत करने लगा
ऐ मेरे हमनशीं , आपकी बातें , अपने आप से करने में बहुत मज़ा आ रहा है . वक़्त की रफ्तार कभी बहुत तेज़ लगती है तो कभी बेहद धीमी . पता नहीं क्यों आपको यह सब बता रही हूं ? इश्क़, मुहब्बत , प्यार , लव , नाम की इन चिड़ियों का मज़ाक़ उड़ाने वाली मैं अब खुद पंख लगाकर उड़ने लगी हूं.
( अगले हफ्ते आगे का किस्सा )
इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,
दैनिक पूरब टाइम्स