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Thursday, October 10, 2024

वो ख़्वाबों के दिन (भाग - 10)

( पिछली सदी का 80 का दशक अपनी अनूठी प्रेम कहानियों के लिए मशहूर था . एक तरफा प्रेम, विरह , जुदाई , दिल का दर्द , दर्द भरी शायरी, दोस्तों की सांत्वना , पालकों की सख्ती, समाज की बेरुखी एक आम बात थी .  इन सबके होते हुए धड़कते दिल को कोई नहीं रोक पाता था . ❤️ की इन्हीं भावनाओं के ताने बाने के साथ मेरी यह धारावाहिक कहानी प्रस्तुत है )

Part - 10

वो ख्वाबों के दिन  भाग 10

( पिछले 9 अंकों में आपने पढ़ा : मन में अनेक अरमान लिए एक गांव से शहर पढ़ने आये एक युवा के दिल की धड़कन बढ़ा देती है , एक दिन अचानक , एक बंगले की पहली मंज़िल की खिड़की . वह देखता है वहां पर एक नाज़ुक व बेहद खूबसूरत युवती जोकि उसकी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर होती है . फिर एक दिन उसे महसूस होता है कि उस खिड़की के सैंकड़ों चक्कर बिलकुल बेअसर नहीं हैं . उस युवती के इशारों इशारों में जवाब और आगे मस्ती से भरी फोन पर शुरू हो चुकी बातचीत ने एक खूबसूरत आकार लेना शुरू कर दिया . आगे , पढें आज पहली मुलाकात में क्या क्या हुआ  )

एक प्रेम कहानी अधूरी सी ….

(पिछले रविवार से आगे की दास्तान – 10 )

अगले दिन रविवार था. अल सुबह मेरे कदम फिर उसकी खिड़की की तरफ बढ़ने के लिए बेचैन थे , एक रुटीन जो बन गया था. बड़ी मुश्किल से मैंने अपने रोका क्योंकि आज तो सीधे 10.30 बजे मुलाकात होनी थी , अपने मन पर राज करने वाली , मलिका से . रात भर जो मैं उसके साथ छेड़ छाड़ , हंसी मज़ाक़ , रोमांस और ना जाने क्या क्या सोच रहा था ? सुबह से घबराहट होने लगी कि उसे मैंदूर के ढोल सुहाने की तरहतो नहीं लगता हूं , कही वह पहली ही मुलाकात में मुझे फ्यूज़ बल्ब ना मान ले . फिर खुद को दिलासा दिया कि कुछ तो खास है माबदौलत में जोमलिकाने मुझसे मिलने की इच्छा दिखाई है . नहा धोकर चुपचाप फिर से बिस्तर पर लेट गया , आंखें खोलकर देखता तो हर बार लगता कि समय इतना धीरे क्यों कट रहा है

और कितने इम्तेहान लेगा वक़्त तू
ज़िन्दगी मेरी है फिर मर्ज़ी तेरी क्यों 

9.30 बजे अपने सबसे स्टाइलिश कपड़ों के साथ , अपने को तैयार किया और चल पड़ा नेहरू पार्क की उस जगह पर जहां उसने मुझे मिलने के लिये बुलाया था . मैं नेहरू पार्क स्विमिंग पूल से निकले अपने साथियों के साथ गप मारते , उन्हें पार्क से बाहर तक छोड़ने आया . एक ने झसे पूछ लिया कि इतने अच्छे कपड़े, क्या तुम्हारा जन्मदिन है ? मेरे ना कहने पर दूसरा बोला , तो क्या आज एक दिन में ही किसी को इम्प्रेस करने का इरादा है ? हम सब ठहाका मार कर हंस दिय  सवा दस बजे , फिर से अंदर की तरफ भागा . नरम धूप थी और ठंडी हवा चल रही थी , पर उस तरफ के बगीचे वाले हिस्से में कोई नहीं था . मैं एक झाड़ी के नीचे लेट गया . फिर से उस खूबसूरत लमहे इंतज़ार करते हुएअपनी सोच के ताने बाने बुनने लगा

ग़ज़ब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया

लगभग दस मिनट के बाद तुम , एक 12 साल की आया जैसी लड़की और एक 6 साल के नन्हे मुन्ने का हाथ पकड़कर, दूसरे हाथ में क्रिकेट का बैट और स्टम्प लेकर आयी . वह बच्चा भारी जोश में था और अपने हाथ की बाल को बारबार उछलकर कैच करने की कोशिश करता था . तुम लोगों ने स्टम्प लगाया और खेल शुरू कर दिया . तुम्हारी आंखें मुझे ढूंढ रही थीं . मुझको देखते ही तुम्हारी नज़रों में खुशी तैर गयी. मैं भी एक अनजान युवा की तरह तुमसे अनुरोध करने लगा कि मुझे भी खिला लो , मैं फील्डिंग में तुम लोगों की मदद करूंगा . तुमने उस लड़की की तरफ देखा , वह खुशी से बोली, दीदी खिला लेते हैं ना ? शायद वह दूर तक दौड़ कर बारबार बॉल लाने से बचना चाहती थी . 6 साल का बच्चा तुम्हारा भतीजा था . मैं उसे धीमी बॉल करता , वह ज़ोर से मारता . मैं उसकी तारीफ़ करता और बॉल लेने जाता. फिर उस लड़की की और उसके बाद तुम्हारी बैटिंग आयी. मैं जानबूझकर कैच छोड़ता, उटपटांग हरकतें और कमेंट कर,  तुम लोगों को हंसाता. तुम सब, मुझसे हिलमिल कर, मज़े लेते. 20 मिनट बाद तुमने कहा, बस , अब खेल ख़त्म करते हैं . बच्चे , उस लड़की और तुमने मुझे मुस्कुरा कर बाय किया . उस बच्चे ने मुझसे अगले रविवार फिर खेल में शामिल होने का वायदा लिया . फिर सामान और बच्चों के साथ तुम अंदर स्वीमिंग एरिया में चली गयी . मैं उदास होकर फिर से उस झाडी के नीचे जाकर लेट गया .

वो करीब आये और अपने जलवे दिखाकर चल दिये 
खेल गये मेरे अरमानों से , और सुला कर चल दिये 

मैंने आंखें बंद की ही थी कि पांच ही मिनट के अंदर मुझे मेरे कान में मीठी आवाज़ आयी, ‘ध्रुव ‘. वह मुस्कुराकर  बोली, बुद्धु राम , कैसे सोच लिया कि मैंने आपको केवल फील्डिंग करने बुलाया है ? झटपट उसने मुझे पार्क के दूसरे हिस्से में चलने कहा . जाते ही वह मेरा हाथ पकड़कर एक झाड़ के नीचे बैठ गयी. मैं रोमांचित हो उठा . कुछ देर चुपचाप हाथों में हाथ रहा,  फिर हाथ को झुलाते हुए बोली , सुनो ना . मैंने आंखों के इशारे से उससे कहा , कहो ना . अब तक हमारे हाथों की कंपकंपाहट गई नहीं थी . उसके गाल और मेरे कान लाल हो चुके थे .

सनसनाहट सी हुई , थरथराहट सी हुई
जाग उठे ख्वाब कई , बात कुछ बन ही गयी
जाने क्या तूने कही , जाने क्या मैने सुनी
गयी जान नई , बात कुछ बन ही गयी

( अगले हफ्ते आगे का किस्सा

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक ,

दैनिक पूरब टाइम्स