छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 80 कि.मी में बसा सिरपुर महानदी के किनारे बसा हुआ है यह एक ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है। यहाँ कई प्राचीन मंदिर हैं।
सिरपुर महानदी के तट स्थित एक पुरातात्विक स्थल है। इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीपुर है यह एक विशाल नगर हुआ करता था तथा यह दक्षिण कोशल की राजधानी थी। सोमवंशी नरेशों ने यहाँ पर राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था। ईंटों से बना हुआ प्राचीन लक्ष्मण मंदिर आज भी यहाँ का दर्शनीय स्थान है।
उत्खनन में यहाँ पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाये गये हैं। सिरपुर पर सर्वाधिक लेख छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक यात्री रमेश कुमार वर्मा लिखे हैं जिसमें इस जगह के मन्दिर का विशेष वर्णन है
सिरपुर में 5वीं से 12वीं शताब्दी के हिंदू , जैन और बौद्ध स्मारकों वाला एक पुरातात्विक और पर्यटन स्थल है
सिरपुर शहर का उल्लेख 5वीं से 8वीं शताब्दी ई. के पुरालेखीय और पाठ्य अभिलेखों में किया गया है।
यह शहर कभी दक्षिण कोसल राज्य के शरभपुरीय और सोमवंशी राजाओं की राजधानी हुवा करता था । यह 5वीं और 12वीं शताब्दी ई. के बीच दक्षिण कोसल साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण हिंदू, बौद्ध और जैन समझौता था। 7वीं शताब्दी के चीनी बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग ने इसका दौरा किया था।
हाल ही में हुए उत्खनन में 12 बौद्ध विहार , 1 जैन विहार, बुद्ध और महावीर की अखंड मूर्तियाँ , 22 शिव मंदिर और 5 विष्णु मंदिर, शक्ति और तांत्रिक मंदिर, भूमिगत अन्न भंडार बाजार और छठी शताब्दी का स्नानघर मिला है
सिरपुर, जिसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों और शिलालेखों में श्रीपुर और श्रीपुरा भी कहा जाता है, चौथी शताब्दी ईस्वी के इलाहाबाद स्तंभ शिलालेख में सिरपुर का उल्लेख श्रीपुरा के रूप में किया गया था पहली सहस्राब्दी ईस्वी के उत्तरार्ध में, यह दक्षिण कोसल साम्राज्य के लिए प्रमुख वाणिज्यिक और धार्मिक महत्व वाला राजधानी शहर भी था।
सिरपुर में 6वीं शताब्दी के मध्य के प्रचुर शिलालेखों में हिंदू शैव राजा तीवरदेव और 8वीं शताब्दी के राजा शिवगुप्त बालार्जुन द्वारा अपने राज्य में हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के लिए मंदिर और मठ स्थापित किया था
सिरपुर का सबसे पुराना स्मारक लक्ष्मण मंदिर है, जो 595-605 ई.पू. का है। इसके साथ ही, राजिम से खरोद तक 150 किलोमीटर तक फैले महानदी के किनारे कई अन्य मंदिर पाए गए हैं, जिनका समय 600 से 710 ई.पू. के बीच है
सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर इतिहास में दर्ज कई विनाशकारी आपदाओं को झेलने वाला यह मंदिर भारत का पहला लाल ईंटों से बना मंदिर है। साथ ही प्रेम की निशानी छत्तीसगढ़ के इस मंदिर को नारी के मौन प्रेम का साक्षी माना जाता है।
सिरपुर में सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की पत्नी रानी वासटादेवी, वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती थीं, जो मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी थीं। राजा हर्षगुप्त की मृत्यु के बाद ही रानी ने उनकी याद में इस मंदिर का निर्माण कराया था। यही कारण है कि लक्ष्मण मंदिर को एक हिन्दू मंदिर के साथ नारी के मौन प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।
नागर शैली में बनाया गया यह मंदिर भारत का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण लाल ईंटों से हुआ था। लक्ष्मण मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में ईंटों पर नक्काशी करके कलाकृतियाँ निर्मित की गई हैं, जो अत्यंत सुन्दर हैंगर्भगृह, अंतराल और मंडप, मंदिर की संरचना के मुख्य अंग हैं। साथ ही मंदिर का तोरण भी उसकी प्रमुख विशेषता है।
मंदिर के तोरण के ऊपर शेषशैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की अद्भुत प्रतिमा है। इस प्रतिमा की नाभि से ब्रह्मा जी के उद्भव को दिखाया गया है और साथ ही भगवान विष्णु के चरणों में माता लक्ष्मी विराजमान हैं। इसके साथ ही मंदिर में भगवान विष्णु के दशावतारों को चित्रित किया गया है। हालाँकि यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है लेकिन यहाँ गर्भगृह में लक्ष्मण जी की प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा 5 फन वाले शेषनाग पर आसीन है।
कैसे पहुँचें – सिरपुर स्थित लक्ष्मण मंदिर से महासमुंद जिला मुख्यालय की दूरी लगभग 38 किलोमीटर है। यहाँ का नजदीकी हवाईअड्डा रायपुर में स्थित है, जो मंदिर से लगभग 80 किमी की दूरी पर है।
महासमुंद रेलवे स्टेशन, मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन है, जिसकी दूरी लगभग 40 किमी है। रायपुर जंक्शन से मंदिर की दूरी लगभग 83 किमी है। इसके अलावा लक्ष्मण मंदिर स्टेट हाइवे 9 पर स्थित है, जिसके माध्यम से यहाँ राज्य के विभिन्न शहरों से पहुँचा जा सकता है।
सिरपुर आज प्रदेश ही नहीं पुरे देश के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुवा है यहां हार साल लाखो श्रद्धालु दर्शन करने व घूमने आते है