क्रिकेट को बहुत हद तक बैटर्स का गेम माना जाता है. इसमें बैटर्स को बॉलर्स से ज्यादा महत्व मिलता है. शायद यही कारण है कि डेब्यू टेस्ट में शतक जड़ने वाले बैटर्स को जितनी वाहवाही मिलती है, उतनी डेब्यू टेस्ट में 10 या इससे अधिक विकेट हासिल करने वाले बॉलर को नहीं मिल पाती. हकीकत यह है कि टेस्ट में 10+ विकेट लेना संभवत: शतक बनाने से भी मुश्किल काम है. क्रिकेट के सबसे पुराने फॉर्मेट टेस्ट में अब तक 5 बैटर अपने डेब्यू और अंतिम टेस्ट में शतक लगाने का कारनामा कर चुके हैं. इसमें भारत के मोहम्मद अजहरुद्दीन, ऑस्ट्रेलिया के ग्रेग चैपल, रेगिनाल्ड डफ और विल पान्सफोर्ड और इंग्लैंड के एलिस्टर कुक शामिल हैं. दूसरी ओर, डेब्यू और अंतिम टेस्ट में 10+ विकेट लेने वाले बॉलर्स की संख्या तो इससे भी कम है.
टेस्ट क्रिकेट में अब तक केवल दो बॉलर अपने डेब्यू और आखिरी टेस्ट (10 or more wickets in Debut and last Tests) में 10 या इससे अधिक विकेट (मानक न्यूनतम दो टेस्ट) लेने का कमाल कर पाया है. यह बॉलर हैं टॉम रिचर्डसन (Tom Richardson) और ऑस्ट्रेलिया के क्लेरी ग्रिमेट (Clarrie Grimmett). इंग्लैंड के तेज गेंदबाज रिचर्डसन ने 1893 से 1898 तक 14 टेस्ट के करियर में 88 विकेट लिए. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने पहले और आखिरी टेस्ट में 10-10 विकेट लिए थे.
दूसरी ओर, ग्रिमेट ने लेगब्रेक गुगली बॉलर की हैसियत से 1925 से 1936 के बीच 37 टेस्ट खेले और 24.21 के औसत से 216 विकेट हासिल किए. ग्रिमेट की कामयाबी ने ऑस्ट्रेलिया के कई बॉलर्स को रिस्ट स्पिनर बनने के लिए प्रेरित किया, इसमें शेन वॉर्न और स्टुअर्ट मैकगिल भी शामिल हैं. बता दें, टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहले 200 विकेट ग्रिमेट ने ही हासिल किए थे. दुर्भाग्यवश ग्रिमेट जिस दौर में क्रिकेट खेले, उस समय टेस्ट खेलने वाले देशों की संख्या काफी कम थी. इस कारण 11 साल के करियर में वे 37 टेस्ट ही खेल पाए. ज्यादा टेस्ट खेलने के लिए मिलने की स्थिति में वे अपने विकेटों को नई ऊंचाई पर पहुंचा सकते थे. ग्रिमेट के अलावा इंग्लैंड के चार्ल्स मैरियट (Charles Marriott) ने 1933 में अपने डेब्यू टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ 96 रन देकर 11 विकेट लिए थे. दुर्भाग्य वे इसके बाद कोई टेस्ट नहीं खेल सके और यही टेस्ट उनका आखिरी टेस्ट साबित हुआ.