नमस्कार, पिछले कई सालों से प्रत्येक रविवार को मैं ‘आशिकाना अन्दाज़’ में कभी ‘वो ख्वाबों के दिन’ लिखता या प्यार-मुहब्बत पर धारावाहिक लिखता था . उन कथाओं में शेर-ओ-शायरियों का शुमार होता था . मेरे अनेक सुधि पाठकों ने मुझसे अनुरोध किया कि अलग-अलग मौके पर काम आ सकने वाली शायरियों को प्रकाशित करें . जिनका संकलन , मौकों पर उनके द्वारा उपयोग किया जा सके . मैने 25 भाग में अलग अलग मिजाज़ की शायरियों का संकलन किया है . आज की शुरुआत मैं कुछ मज़ेदार शायरियों से कर रहा हूं . चाहे महफिल हो चाहे मंच , इस्तेमाल करें इन ‘ मज़ेदार शायरियों को…..
- हमने भी कभी प्यार किया था, थोड़ा नही बेशुमार किया था,
दिल टूट कर रह गया, जब उसने कहा, अरे मैने तो मज़ाक किया था… - धोखा मिला जब प्यार में, ज़िंदगी में उदासी छा गयी,
सोचा था छोड़ दें इस राह को, कम्बख़त मोहल्ले में दूसरी आ गयी .. - गिर कर महबूबा की बाहों मे ऐसा जोश आया
बीवी ने देख लिया, फिर आईसीयू में होश आया.. - कफन हटा दो मेरे चेहरे से,
मुझे आदत है मुस्कुराने की…
दफनाने वालो जरा रुको,
मुझे अब फिर से जागी है उम्मीद ,
खाते में 15 लाख आने की.. - गिटार सीखा था,
यारों उसको पटाने के लिए,
आज ऑफर आया है,
उसकी शादी में बजाने के लिये… - ये जो लड़कियों के बाल होते हैं,
लड़कों को फ़साने के जाल होतेहैं,
खून चूस लेती हैं आशिक़ों का सारा,
तभी तो इनके होंठ लाल होते हैं.. - मंजिल उन्हीं को मिलती है,
जिनके हौसलों में जान होती है,
और बंद भट्ठी में भी दारू उन्हीं को मिलती है,
जिनकी भट्ठी में पहचान होती है.. - अगर मैं एक्ज़ामिनर होता
तो देता नंबर दस में दस
अदाओं के , नज़ाक़त के ,
मुहब्बत के अलग देता.. - सुना है पागलखाने की दीवार फांदकर कुछ पागल फरार हो गए
कुछ वापस चले गए और कुछ हमारे यार हो गए.. - छम छम करती आई थी , छम छम करती चली गई
मैं सिंदूर लेकर खड़ा था , वो राखी बांधकर चली गई - मैंने उसे दिल दिया महबूबा समझ कर
उसने , उसे खा लिया खरबूजा समझ कर
आगे दोस्ती, प्यार , धोखा , शराब –साकी, इंतज़ार , मंच में बोले जा सकने वाले शेर , अनेक गद्यांश भीआपकी सेवा में प्रस्तुत करूंगा ….
इंजी. मधुर चितलांग्या , प्रधान संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स