राजनांदगांव में बचपन से बाल समाज गणेश समिति द्वारा अपने घर के सामने कराये गये महात्माओं के प्रवचन को मैं सुनता रहा। वे महात्मा कहानियों के माध्यम से बहुत सी बातें समझाते थे जो आज भी समयोचित है। सच में , कई सवालों के जवाब विद्वानों की संगत व श्रवण करने से मिल जाते है।
एक बार मैंने अपने स्व. पिता के परम मित्र श्री महेश्वर प्रसाद जी पांडे को राजनांदगांव से अपने यहां पूजा के लिये भिलाई निमंत्रण दिया था। वे बहुत बड़े कर्मकाण्ङी विद्वान थे। चर्चा के दौरान एक सवाल निकल आया , ईश्वर दयालु है या न्यायप्रिय है ? इस चर्चा में कई लोग शामिल हुए। किसी ने कहा , ईश्वर न्यायप्रिय है . तब दूसरे ने कहा, यदि वह जज की तरह कार्य करेगा और दयालु नहीं होगा तो कैसा ईश्वर ? तीसरे ने कहा कि वह दयालु है . तब चौथे ने कहा यदि वह केवल दया करे और न्याय न करें तो कैसा ईश्वर ?
अब मैं , महेश्वर महाराज जी और अन्य सभी यह मान गये थे कि ईश्वर दयालु है और न्यायप्रिय भी , पर सब बड़ी उलझन में थे। फिर हमने एक प्रकाण्ड रामायण विद्वान स्व. डी. पी. मिश्रा जी से फोन पर बात की तो उन्होंने हमें अपने पास बुला लिया । उन्होने बताया , एक व्यक्ति ऊपर के सवाल का जवाब न मिलने पर बहुत दुखी था। वह एक मौलवी के पास गया। मौलवी ने बताया कि अल्लाह रहम दिल जरुर है पर वे न्यायप्रिय है। गलत करने वाले को सजा देते है और अच्छा करने वाले को आबाद करते है। फिर वह व्यक्ति चर्च के पादरी के पास गया तो उसने कहा . ईश्वर न्याय जरुर करता है पर वह बेहद दयालु होता है। प्रभु ईशु ने तो अपने को सूली चढ़ाने वालो के लिए भी ईश्वर से दया मांगी। अब उस व्यक्ति को यह बात समझ में आ गयी की ईश्वर दयालु और न्यायप्रिय दोनों है। पर कब और कैसे ? वह व्यक्ति संत गोन्दवलेकर जी महाराज के पास पहुंचा। तब महाराज ने उसे बताया कि ईश्वर सकाम भक्तों के लिए न्यायप्रिय तथा निष्काम भक्तों के लिए दयालु है। अर्थात यदि कोई ईश्वर की पूजा आराधना कर, उससे प्रतिफल की आशा करता है तो प्रभु गुण दोष के आधार पर उसे न्याय देते है और यदि कोई स्वयं को समर्पित कर , बिना स्वार्थ के , ईश्वर की आराधना करता है तो प्रभु उस पर दया भाव रखते है। इसलिये हमारे मुख पर बिना किसी लालच के, हर समय राम का नाम रहना चाहिये . सचमुच, यदि हम केवल फल प्राप्ति के लिए कार्य करते है तो ईश्वर व प्रकृति गुण दोष के आधार पर प्रतिफल देती है। किसी भी अच्छे लाभ के लिए मेहनत करने वाले को गुण धर्म के आधार पर लाभ अवश्य मिलता है। यदि आप पूजा की तरह, आस्था से, समर्पण भाव से बिना फल की चिंता किये कोई काम करते है तो प्रकृति आपकी सहयोगी बन जाती है। आपके लिये, आपके साथ कार्य करती है , आप पर प्रेम बरसाती है , इसलिए आप निष्काम भक्ति कर प्रभु व प्रकृति के कृपा पात्र बन सकते हैं ।
यह सबक , मेरे लिये जीवन भर याद रखने वाली बात हो गई . अमूमन यह बात हमारी नौकरी या व्यापार में भी लागू होती है . यदि हम, किसी के लिये, बिना अतिरिक्त की चाह के साथ , ज़्यादा समर्पण से कार्य व्यवहार रखते हैं तो हमको सामने वाले की भी अतिरिक्त लाभकारी सद्भावना अपने आप मिलती है .
इंजी . मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स
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