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Thursday, March 27, 2025
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महेश्वर: नर्मदा तट पर बसा प्राचीन नगर और ज्वालेश्वर महादेव मंदिर का महत्व

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित महेश्वर नर्मदा नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक नगर है, जिसे पौराणिक काल में ‘माहिष्मती’ के नाम से जाना जाता था। यह स्थान धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

ज्वालेश्वर महादेव मंदिर: शिवभक्तों का आस्था केंद्र

महेश्वर में स्थित ज्वालेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव के भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध करने के पश्चात अपने शस्त्र नर्मदा नदी में विसर्जित किए थे। यह मंदिर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्थल भी है। हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा-अर्चना और भव्य आयोजन किए जाते हैं, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

महेश्वर का ऐतिहासिक महत्व

इतिहासकारों के अनुसार, महेश्वर का इतिहास लगभग 4500 वर्ष पुराना है। रामायण काल में यह ‘माहिष्मती’ के रूप में प्रसिद्ध था और हैहय वंशी राजा सहस्रार्जुन की राजधानी थी, जिन्होंने रावण को पराजित किया था। महाभारत काल में यह अनूप जनपद की राजधानी रहा। बाद में, मराठा शासकों के अधीन आने के पश्चात देवी अहिल्याबाई होलकर ने इसे अपनी राजधानी बनाया और यहां कई मंदिरों एवं घाटों का निर्माण कराया। वर्तमान में, यह नगर अपने प्राचीन घाटों, मंदिरों और प्रसिद्ध माहेश्वरी साड़ियों के लिए जाना जाता है।

जनसहयोग से हुआ मंदिर का पुनर्निर्माण

ज्वालेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में मराठा शासकों द्वारा कराया गया था। हालांकि, समय के साथ यह मंदिर जीर्ण अवस्था में पहुंच गया और दो वर्ष पूर्व नर्मदा में आई बाढ़ के कारण मंदिर को भारी क्षति पहुँची। स्थानीय श्रद्धालुओं ने मिलकर जनभागीदारी से मंदिर के जीर्णोद्धार की शुरुआत की। वर्तमान में, इसकी बाउंड्रीवाल तैयार हो चुकी है और मुख्य मंदिर की मरम्मत का कार्य चल रहा है, जिससे इसे पुनः भव्यता प्रदान की जा सके।

महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजन

हर वर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर ज्वालेश्वर महादेव मंदिर में विशेष पूजा, रुद्राभिषेक और धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस पावन अवसर पर हजारों श्रद्धालु मंदिर में एकत्रित होते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। मंदिर से जुड़े श्रद्धालुओं के अनुसार, यह स्वयंभू शिवलिंग है और इसकी महिमा का उल्लेख नर्मदा पुराण सहित कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि इस शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

पुरातात्विक दृष्टि से संरक्षित स्थल

ज्वालेश्वर महादेव मंदिर को इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को देखते हुए पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्थल घोषित किया गया है। मंदिर की वास्तुकला प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो इतिहासकारों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। मंदिर परिसर में पुरातत्व विभाग द्वारा चेतावनी बोर्ड लगाए गए हैं, जिनमें लिखा गया है कि मंदिर को कोई क्षति पहुँचाने पर दंड और जुर्माना लगाया जाएगा।

शिव और नर्मदा का पौराणिक संबंध

धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए पाशुपत अस्त्र का प्रयोग किया था। जब उन्हें यह आभास हुआ कि यह अस्त्र अत्यंत शक्तिशाली है, तो उन्होंने इसे नर्मदा के पवित्र जल में विसर्जित कर दिया। मंदिर के पीछे स्थित कदंब वन और कदंबेश्वर मंदिर भी इसी स्थान से जुड़े हुए हैं। मान्यता है कि यहीं जगद्गुरु शंकराचार्य ने विश्राम किया था।

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