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हम नहीं सुधरेंगे , पर ट्रैफिक सुधरना चाहिये , पुलिस व प्रशासन को ज़्यादा मेहनत करना चाहिये

हम छत्तीसगढ़ियों की एक ख़ास अदा है । हम मौका मिलते ही अनुशासनहीन हो
जाते हैं । बड़े शहर गए तो ट्रैफिक के सभी नियम याद आ जाते हैं पर अपने घर लौटते ही
सब भूल जाते हैं । प्रदेश में अनेक जगहों पर भले ही जगह जगह पर लाखों रूपये खर्च
कर पैदल ब्रिज(फुट  ओवरब्रिज) बनाये गए हैं पर डिवाइडर के ऊपर से कूदकर सड़क पार करना हमें बहुत पसंद आता है। वाहन चलाते वक़्त क्रॉसिंग पर पहुंचकर हमारी नजर सिर्फ ट्रैफिक पुलिस को तलाशती है।
पुलिसमैन नहीं, तो फिर रेडलाइट जंप करना हमें विशेषाधिकार नजर आने लगता है। रेडलाइट पर अपनी बारी का इंतजार करते कुछ लोग यह सब देखकर अपने आपको बेववूफ समझने लगते हैं और आपके देखा-देखी वे भी रेडलाइट जंप कर जाते हैं, भले ही इसका अंजाम कितना ही बुरा हो।
अमूमन रात 9 बजे के बाद सड़कों से ट्रैफिक पुलिस हट जाता है और 11 बजे के बाद तो ट्रैफिक सिग्नल भी बंद हो जाते हैं। सुबह 8 बजे तक यही स्थिति रहती है। बस, यही वे घंटे हैं जिनमें हमें 100 प्रतिशत अनुशासनहीन होने का पूरा मौका और खुली छूट मिल जाती है।  मेरी पत्रकार माधो से बहस हो गयी कि ट्रैफिक नियम पालन करने की जिम्मेदारी आम नागरिक की होती है, न कि  इसको पालन
करवाने की  जिम्मेदारी ट्रैफिक पुलिस की होती है । मेरा तर्क था कि जागरूकता बढ़ेगी तो  क्रॉसिंग
पर ट्रैफिक पुलिस तैनात की ज़रुरत ही नहीं रहेगी। अब दुनियाभर में अब क्रॉसिंग से पुलिसमैन को हटाया जा रहा है और सिग्नल से ही ट्रैफिक कंट्रोल होता है। मेरी बात सुनकर वे हँसते हुए अपने अंदाज़ में बोले, शायद तुम सही कह रहे हो ?आजकल शायद इसीलिए हमारे यहां ट्रैफिक पुलिस क्रॉसिंग पर नहीं, बल्कि क्रॉसिंग के बाद झाड़ी में छिपकर खड़ी होती है ताकि कोई व्यक्ति अपनी आदत से मजबूर होकर ट्रैफिक सिग्नल तोड़े और पुलिस उससे जुर्माना वसूल करे। पुलिस बार बार जुर्माना करके इस आदत में सुधार लाना चाहती है। चाहे वह जुर्माना सरकारी ख़ज़ाने में जाए या खुद की जेब में । इसपर मैंने कहा कि जरूरत है इस सच्चाई को स्वीकार करने की कि ‘जब तक हम नहीं सुधरेंगे , ट्रैफिक नहीं सुधरेगा ‘।  वे
मुस्कुराते हुए बोले , जिले में जब भी नया पुलिस कप्तान आता है तो वो अपनी सोच के अनुसार , चौपहिया वाहन में कभी सीट बेल्ट के लिये कड़ाई , कभी पर्यावरण सर्टिफिकेट के लिए
तो कभी टू व्हीलर पर ट्रिपल सीट के लिये कड़ाई करता है । इस बार सरकार भी हेलमेट के पीछे पड़ गयी है । चलो भाई , टू व्हीलर वालों से ट्रैफिक नियम पालन नहीं करवा सकते हैं तो कम से कम उनकी जान बचाने के लिए दूसरी तरह की कोशिश की जाए। अब वे बिंदास ट्रैफिक नियमों को तोड़ते हुए ज़्यादा गति से सर्विस लाइन की जगह फोरलेन में  गाड़ी चलाएं , कहीं भी ओवरटेक करें, रेड लाइट क्रॉस करें । हेलमेट पहना है तो एक्सीडेंट में जान तो बच ही जाएगी । अब ट्रैफिक  पुलिस वालों को भी नक़ाब खुलवाने के
चक्कर से भी छुट्टी मिलेगी । अब मुझे भी हंसी आ गई , यह बात उन्होंने व्यंग में कही पर इसमें दम था । सच में , सड़कों पर जुगाली करते बिंदास मवेशियों में भी भारी खुशी है कि अब उनसे टकराकर मरने वाले टू व्हीलर चालकों में भी भारी कमी होगी ।

इंजी. मधुर चितलांग्या , संपादक
दैनिक पूरब टाइम्स

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