ईद पर सलमान खान पहले भी भाईचारे का संदेश देने वाली फिल्में लेकर आ चुके हैं. सिकंदर भी उसी परंपरा की फिल्म है. हां, संदर्भ नया है. सिकंदर में मनमोहन देसाई की अमर अकबर एन्थॉनी वाली फीलिंग भी लाने की कोशिश की गई है. फिल्म बताती है- जीते जी हम भले ही अलग-अलग कौमों और जातियों में बंटे होते हैं लेकिन ऑर्गेन डोनेशन मरने के बाद इंसानी फर्ज का अनमोल उपहार होता है.
ईद से पहले और पहली चैत्र नवरात्र के दिन सलमान खान की फिल्म आई- सिकंदर. परंपरा से हटकर शुक्रवार के बदले रविवार को रिलीज हुई. ईद पर सलमान पहले भी ऐसी फिल्म लाते रहे हैं जिसमें भाईचारा और मोहब्बत वाला मैसेज और मेलोड्रामाई मनोरंजन का मिश्रण हो. इस बार भी सलमान ने वही किया. सिकंदर एक बार फिर हल्के-फुल्के मसाला मनोरंजन के साथ दिल वाला मैसेज लेकर आई. फिल्म की शुरुआत में रश्मिका मंदाना की आवाज गूंजती है- राजा वो नहीं जो सम्राज्य पर शासन करे, असली राजा वो होता है- जो जनता के दिलों पर राज करता है. इसके बाद फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है. सलमान को वीर, परोपकारी और साहसी नायक के रूप में दिखाया जाता है. और इस दौरान सत्तर और अस्सी के दशक के सिनेमा का फ्लेवर भी आ जाता है, जहां मैसेज और मेलोड्रामा का कॉकटेल शबाब पर होता था. सिकंदर उसी परंपरा को मौजूदा दौर के इफेक्ट्स के साथ पेश करती है.
सिकंदर में दीवार के अमिताभ बच्चन की छाप दिखेगी, मुकद्दर का सिकंदर का फलसफा नजर आएगा तो अमर अकबर एन्थॉनी के भाईचारे वाली मोहब्बत की संवेदना भी. संजय राजकोट के रूप में सलमान खान जनता के दिलों पर कैसे राज करते हैं और कितने दरियादिल, बहादुर, बलिदानी, पराक्रमी और प्रतापी हैं- पूरी फिल्म इस बात का बखान करती है. यानी सिकंदर एक बार फिर से सलमान खान को उसी अंदाज में महान बनाकर पेश करती है, जैसे कि वांटेड के बाद उन्होंने अधिकतर फिल्में की हैं. सिकंदर का भी एक मिशन है- खतरे में फंसी जान को बचाना है, दुख-दर्द झेल रहे गरीबों तक मदद पहुंचाना है और जिनका कोई नहीं, उन बेसहारों की रक्षा करनी है.
ऑर्गन डोनेशन का इंसानी जज्बात
सिकंदर में दिल वाला मैसेज वर्तमान माहौल में काफी अहम है. यहां ऑर्गन डोनेशन को इंसानी फर्ज बताया गया है. फिल्म में सिकंदर की पत्नी साईंश्री (रश्मिका मंदाना) का जब निधन हो जाता है तब सलमान को पता चलता है कि उसने अपने तीन ऑर्गेन डोनेट कर रखे थे. इस प्रकार उसके तीन ऑर्गेन में से एक लंग्स, आंखें और दिल तीन अलग-अलग जरूरतमंदों को प्रदान किया गया है. इससे तीन लोगों की जिंदगी संवर गई.
आमतौर पर शायद ही पब्लिक में किसी को पता चल पाता है कि किसका ऑर्गेन किसके शरीर में है लेकिन जब इस फिल्म में इन बातों को दिखाया जाता है तो कहानी में एक नये किस्म की संवेदना जागृत होती है. जज्बात जाग जाते हैं. सिकंदर इन तीनों किरदारों से कनेक्ट होता है और उनमें अपनी पत्नी की छाया को महसूस करता है. सिकंदर अपनी पत्नी की श्रद्धांजलि में इन तीनों की जिंदगी पर कोई आंच नहीं आने देना चाहता, यही उसका मिशन और प्रण है.
दीवार में अमिताभ बच्चन वाला डायलॉग याद आया
फिल्म घरेलू महिलाओं की कामकाजी जिंदगी के प्रति पुराना और दकियानूस नजरिया छोड़ने का भी संदेश देती है. सिकंदर महिलाओं को सामान्य गृहिणी को उद्यमी बनाने की प्रेरणा देता है. इसके अलावा फिल्म इस बात की ओर भी इशारा करती है कि आप अपने जीवन साथी को भरपूर समय जरूर दें. वरना जिस प्रकार एक साम्राज्य का मालिक होकर भी सिकंदर जिस प्रकार अपनी जीवन साथी के नहीं रहने पर भटकाव का शिकार हो चुका है, उसी हालात और मनोदशा का कोई भी शिकार हो सकता है. परिवार में एकता और प्यार है, तो सब राजा और रानी हैं. इसके बिना सोने का साम्राज्य भी सूना-सूना है.
वैसे तो एआर मुरुगॉदास ग़ज़नी स्टाइल के डायरेक्टर के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं लेकिन यहां उनके डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले में गुजरे जमाने के मशहूर डायरेक्टर प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई वाली फीलिंग भी गुंथी हुई है जो आपको सत्तर और अस्सी के दशक में ले जाती है. प्रकाश मेहरा ने फिल्म बनाई थी- मुकद्दर का सिकंदर. किशोर कुमार की आवाज में अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया गाना आज भी लोकप्रिय है- रोते हुए आते हैं सब हंसता हुआ जो जाएगा, ओ मुकद्दर का सिकंदर जानेमन कहलाएगा…
यकीन मानिये सिकंदर में सलमान खान भी एक ऐसे जानेमन बने हैं जिसका मिशन है- हर रोते हुए को हंसाना और उसे खुशियां प्रदान करना. फिल्म में दीवार के मशहूर डायलॉग- तुम लोग मुझे वहां ढ़ूंढ़ रहे हो, मैं तुम्हारा यहां इंतजार कर रहा हूं- से प्रेरित सलमान भी विलेन बने कटप्पा फेम सत्यराज से कहते हैं- आप लोग मुझे बाहर तलाश रहे हैं मैं तो आपका घर में इंतजार कर रहा हूं. और फिर उसके बाद विलेन की मांद में घुसकर उसी की दनादन पिटाई.
नये जमाने की अमर अकबर एन्थॉनी वाला फ्लेवर
ईद के मौके पर सलमान की ज्यादातर फिल्मों में कौमी एकता और भाईचारे को जरूर फोकस करते हैं. बजरंगी भाईजान इसका सबसे मुकम्मल नजीर है. जहां हिंदू-मुस्लिम के साथ-साथ दो मुल्कों के बीच भी मोहब्बत वाली संवेदना जगाने की कोशिश की गई थी. सिकंदर में मनमोहन देसाई की अमर अकबर एन्थॉनी वाली फीलिंग भी लाने की कोशिश की गई है. हालांकि डायरेक्टर-राइटर ने इसकी छाप से बचने की कोशिश की है लेकिन हमारा मानना है कि एआर मुरुगॉदास अगर चाहते तो सिकंदर को नये जमाने की अमर अकबर एन्थॉनी जैसी कहानी पेश कर सकते थे.
फिल्म में सलमान की पत्नी साईंश्री के लंग्स जिस किशोर वय के लड़के को डोनेट किये गए हैं- उसका नाम कमरूद्दीन है. यानी वह मुस्लिम है, उसके भीतर हिंदू महिला का लंग्स लगाया गया है. इसी प्रकार रश्मिका के बाकी दो अंग भी दो अलग-अलग परिवार में डोनेट किये गये हैं. एक युवती को रश्मिका का दिल तो दूसरे परिवार की महिला को रश्मिका की आंखें. इस प्रकार फिल्म यह भी बताने का प्रयास करती है कि जीते जी हम भले ही अलग-अलग कौमों और जातियों में बंटे होते हैं लेकिन मरने के बाद हमारा ऑर्गेन इंसानी फर्ज का अनमोल उपहार बन जाता है. डायरेक्टर-राइटर चाहते तो कहानी में मंत्री और राजा के बीच की दुश्मनी के बजाय इस फैक्टर को अधिक फोकस कर सकते थे. इससे यह फिल्म भी बजरंगी भाईजान की तरह ऑलटाइम दर्शनीय बन जाती.
गोल्डेन क्लासिक फिल्मों वाली फीलिंग
फिल्म में गोल्डेन क्लासिक फिल्मी फीलिंग डालने के लिए दो अलग-अलग जगहों पर सलमान खान और रश्मिका मंदाना दो गाने की एक-एक पंक्ति गाते हैं. सिकंदर जब अकेला हो गया- तो वह गुनगुनाता है- आगे भी जाने ना तू, पीछे भी जाने ना तू, जो भी है बस इक पल है. इसके बाद वह अपने मिशन पर निकल पड़ता है. इसी तरह रश्मिका सलमान के साथ एक रोमांटिक सीन में गाती है- हमको मिली है आज ये घड़ियां नसीब से… जी भर के आज देख लो हमको करीब से… शायद इस जनम में मुलाकात हो ना हो… तो फिल्म का एक गाना ज़ोहरा जबीं… पहले ही रिलीज होकर लोकप्रिय हो चुका था, जो दर्शकों को साठ के दशक की स्मृतियों में ले जाता है.
इसके अलावा इस फिल्म की कहानी जैसे ही राजकोट से निकलकर मुंबई आती है- सत्तर और अस्सी के दशक वाली फिल्मों के कई सीन याद आने लगते हैं. मुंबई में ट्रेन या फ्लाइट से उतरते ही टैक्सी और टैक्सी ड्राइवर का दर्शन- किद्दर जाने को मांगता साब. तो मुंबई की सड़कों पर हीरो, विलेन की उलटती, पलटती, तेज रफ्तार से भागती गाड़ियां. कभी गाड़ियों के परखच्चे उड़ जाते तो कभी कहीं भयंकर आग लग जाती. तो वहीं स्लम बस्ती धारावी की दुश्वारियां भरी जिंदगी, डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में शामिल अंडरवर्ल्ड टाइप अपराधी किस्म के लोग. यानी सिकंदर बॉलीवुड का एक ऐसा मसाला सिनेमा है, जहां एक्शन, वॉयलेंस, स्टंट, रोमांस, रोमांच तो है साथ ही वनलाइन का मैसेज भी है कि इंसान की पहचान उसके दिल और मोहब्बत से है.
सिकंदर में जीवनसाथी के प्रति समर्पण का भाव
सलमान खान और रश्मिका मंदाना दोनों ने मिलकर इसे एक यादगार फिल्म बना दिया है. रश्मिका पर्दे पर रंग बिरंगी रश्मियां बिखेरती हैं. दोनों में उम्र का फासला जरूर है लेकिन पर्दे पर यह ज्यादा दिखता नहीं है. दोनों के साथ वाले सीन भी कम ही रखे गये हैं. हां, गानों में ज्यादा दिखते हैं. फिल्म में एक स्थान पर रश्मिका से कहलावाया गया है कि- हममें उम्र का अंतर जरूर है लेकिन उन्होंने मेरी जान बचाई, प्रेम किया और शादी की, यह हमारी खुशनसीबी है.
इसके बाद वह राजा बाबू सिकंदर की जान की हिफाजत के मिशन में जुट जाती है. और दूसरी तरफ पत्नी के मरने के बाद उसकी आत्मा की शांति और अपने प्रायश्चित बोध के लिए सिकंदर की फर्जअदायगी. इस प्रकार फिल्म में जीवनसाथी का एक-दूसरे के प्रति समर्पण का भाव भी निहित है. फिल्म जब समाप्त होती है तो एक बार फिर रश्मिका की आवाज में वही डायलॉग गूंजता है- राजा वही होता है जो जनता के दिलों पर राज करता है.