खाटू श्याम का मंदिर राजस्थान के सीकर में स्थित है। वैसे तो खाटू श्याम के कई मंदिर हैं, लेकिन माना जाता है कि राजस्थान के सीकर में स्थित यह मंदिर खाटू श्याम के सभी मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध है। खाटू श्याम को कलियुग जगत में सबसे प्रसिद्ध भगवान माना जाता है। खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए हर दिन लाखों भक्त जुटते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान के दर्शन करने और अपनी मनोकामना मांगने आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कलियुग में खाटू श्याम की पूजा करने के 10 महत्वपूर्ण कारण खाटू श्याम का अर्थ है ‘मां सैव्यं परजात:’ यानी पराजित और निराश लोगों को शक्ति देने वाला। खाटू श्याम को श्री कृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है। खाटू श्याम का जन्मोत्सव कार्तिक शुक्ल की देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के फाल्गुन महीने की शुक्ल षष्ठी से लेकर बारस तक खाटू श्याम के मंदिर परिसर में भव्य मेला लगता है। इसे ग्यारस मेला के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार खाटू श्याम पांडव पुत्र भीम के पौत्र थे। उनका नाम बर्बरीक था। भीम के पुत्र का नाम घटोत्कच था और उनके पुत्र का नाम बर्बरीक था। बर्बरीक की माता का नाम हिडिम्बा था। आज के समय में बर्बरीक को बाबा खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है। महाभारत के बर्बरीक को श्री कृष्ण ने कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। स्वप्न दर्शन के बाद बाबा श्याम खाटू धाम में स्थित तालाब में प्रकट हुए और श्री कृष्ण शालिग्राम के रूर स्थित मंदिर में दर्शन देते हैं। खाटू श्याम जी को शीश दानी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने भगवान कृष्ण को अपना शीश दान कर दिया था। इसके अलावा उन्हें मोरछिधारी भी कहा जाता है। खाटू श्याम जी को दुनिया का दूसरा और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी कहा जाता है। खाटू श्याम जी ने विरोधी टीम का पक्ष लिया था, इसलिए उन्हें हारे का सहारा कहा जाता है।