Total Users- 1,051,624

spot_img

Total Users- 1,051,624

Saturday, July 19, 2025
spot_img

भक्ति रस के महान कवि -कृष्ण भक्त सूरदास

हिन्दी साहित्य में कृष्ण-भक्ति की अजस्र धारा को प्रवाहित करने वाले भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा आगरा मार्ग के किनारे स्थित रुनकता नामक गांव (कई विद्वानों का मत है कि सूर का जन्म सीही में हुआ था) में हुआ। सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में मतभेद है। प्रारंभ में सूरदास आगरा के समीप गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य (ऐसी मान्यता है कि बल्लभाचार्य सूरदास से दस दिन बड़े थे) से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षित कर के कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम में 1580 ईस्वी में हुई। साहित्यिक विशेषताएं – सूरसागर का मुख्य वर्ण्य विषय श्री कृष्ण की लीलाओं का गान रहा है। राधा-कृष्ण के रुप सौन्दर्य का सजीव चित्रण, नाना रंगों का वर्णन, सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता आदि गुणों के कारण अधिकतर वर्तमान विद्वान सूर को जन्मान्ध स्वीकार नहीं करते। सूरसारावली में कवि ने कृष्ण विषयक जिन कथात्मक और सेवा परक पदो का गान किया उन्ही के सार रूप मैं उन्होने सारावली की रचना की। सहित्यलहरी में सूर के दृष्टिकूट पद संकलित हैं।
रचनाएं : सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं
– 1. सूरसागर 2. सूरसारावली 3. साहित्य.लहरी 4. नल.दमयन्ती 5. ब्याहलो भारतीय

संस्कृति में सूरदास का इतना अधिक महत्व है कि अंधों को आदर स्वरुप सूरदास नाम से संबोधित करते हैं सूरदास जी की कुछ रचनाएं
चरन कमल बंदौ हरि राई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, आंधर कों सब कुछ दरसाई।।
बहिरो सुनै, मूक पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तेहि पाई।।

हमारे प्रभु, औगुन चित न धरौ।
समदरसी है नाम तुहारौ, सोई पार करौ।।
इक लोहा पूजा में राखत, इक घर बधिक परौ।
सो दुबिधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ।।
इक नदिया इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।
जब मिलि गए तब एक.वरन ह्नै, सुरसरि नाम परौ।।

तन माया, ज्यौ ब्रह्म कहावत, सूर सु मिलि बिगरौ।
कै इनकौ निरधार कीजियै कै प्रन जात टरौ।।
इक जीव इक ब्रह्म कहावत सूरश्याम झगरौ।
अबकी बेर मोहि पार कीजै, कै प्रण जात टरौ।।

अंखियां हरिदरसन की प्यासी।
देख्यौ चाहति कमलनैन कौय निसिदिन रहति उदासी।।
आए ऊधै फिरि गए आंगनय डारि गए गर फांसी।
केसरि तिलक मोतिन की मालाय वृन्दावन के बासी।।
काहू के मन को कोउ न जानतय लोगन के मन हांसी।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कौय करवत लैहौं कासी।।

निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि.पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे।।
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
“सूरदास” अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे।।

spot_img

More Topics

सावन में नागों का जोड़ा देखने की क्या है धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन का महीना भोलेनाथ को...

जानिए कब और कैसे करें सौंफ का इस्तेमाल?

गर्मियों में पेट से जुड़ी समस्याएं काफी परेशान करती...

इसे भी पढ़े