जिसने सीता को राम से दूर किया, उसे मिला ऐसा वरदान ….
रामायण की कथा में कई ऐसे पात्र हैं, जिन्होंने अपने कर्मों से या तो महानता पाई या घोर पाप का बोझ उठाया। लेकिन प्रभु श्रीराम की करुणा और न्याय का उदाहरण तब देखने को मिलता है, जब वे अपने सबसे बड़े विरोधी को भी दंड नहीं, बल्कि वरदान देते हैं।
जी हां, बात हो रही है रावण की – लंका का राजा, जिसने सीता माता का हरण किया और रामजी से युद्ध किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतने बड़े ‘महापाप’ के बावजूद प्रभु राम ने रावण को अंत समय में ऐसा वरदान दिया, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे।
रावण का अंतिम समय और प्रभु की करुणा
जब राम-रावण युद्ध अपने अंतिम चरण में था और रावण बुरी तरह घायल होकर धराशायी हो चुका था, तब लक्ष्मण जी ने उससे सीख लेने से इंकार कर दिया। लेकिन श्रीराम ने कहा – “ज्ञान किसी से भी लिया जा सकता है, चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो।”
रामजी ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वे रावण के पास जाकर उससे धर्म, राजनीति और जीवन के गूढ़ रहस्य जानें। यह उस समय की बात है जब रावण मृत्युशैया पर था।
रामजी ने दिया ज्ञान का सम्मान
रावण ने मृत्यु से पहले श्रीराम को कई महत्वपूर्ण बातें बताईं – जिनमें समय की कीमत, नीति, धर्म और जीवन की सच्चाई शामिल थी। और प्रभु राम ने उस ज्ञान को न केवल स्वीकार किया, बल्कि रावण को ‘महाज्ञानी’ कहकर उसका सम्मान भी किया।
क्या था प्रभु का असली संदेश?
प्रभु राम का यह व्यवहार बताता है कि वे केवल न्यायप्रिय नहीं थे, बल्कि करुणा और क्षमा के सागर भी थे। उन्होंने यह सिखाया कि हर व्यक्ति में अच्छाई होती है, और बुराई का नाश होने के बाद भी उसकी अच्छाई को सम्मान देना चाहिए।