राजस्थान की पावन धरती पर स्थित करणी माता मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह एक ऐसा चमत्कारी स्थल भी है जहाँ श्रद्धालु अपनी मन्नतों के लिए विशेष रूप से चूहों को दूध पिलाने आते हैं। मान्यता है कि यदि कोई भक्त श्रद्धापूर्वक मंदिर के पवित्र चूहों को दूध पिलाता है, तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।यह परंपरा केवल आस्था नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही एक रहस्यमयी मान्यता है, जिसने देश-दुनिया के श्रद्धालुओं को इस मंदिर से जोड़ रखा है।
जानिए चूहों से जुड़ा इतिहास क्या है करणी माता मंदिर की विशेषता? बीकानेर जिले के देशनोक कस्बे में स्थित करणी माता मंदिर को ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहा जाता है। यह विश्व का इकलौता मंदिर है जहाँ चूहों को देवता तुल्य सम्मान दिया जाता है। यहाँ लगभग 25,000 से अधिक चूहे मंदिर परिसर में स्वतंत्र रूप से विचरण करते हैं, जिन्हें ‘काबा’ कहा जाता है। ये चूहे मंदिर की आत्मा माने जाते हैं।इन चूहों के बीच कुछ सफेद चूहे भी होते हैं जिन्हें करणी माता का विशेष रूप या संकेत माना जाता है। कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु इन दुर्लभ सफेद चूहों के दर्शन कर लेता है, उसे करणी माता की सीधी कृपा प्राप्त होती है।
पूजनीय दूध पिलाने की परंपरा करणी माता मंदिर में आने वाले भक्त विशेष रूप से दूध और प्रसाद लेकर आते हैं, जिसे पहले चूहों को अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष इच्छा को लेकर मंदिर आता है और श्रद्धापूर्वक चूहों को दूध पिलाता है, तो उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है।दूध पिलाना एक तरह की मनोकामना पूर्ति की याचना मानी जाती है, जिसमें चूहे माध्यम बनते हैं करणी माता तक श्रद्धा पहुंचाने का। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि “चूहों को प्रसन्न करना करणी माता को प्रसन्न करने जैसा ही है।”
बरसेगी पितरों की कृपा, हर क्षेत्र में मिलेगी सफलता क्या है इस आस्था के पीछे का रहस्य? लोककथाओं के अनुसार, करणी माता ने अपने पुत्र लक्ष्मण की मृत्यु के बाद यमराज से उसे जीवित करने की प्रार्थना की थी। यमराज ने उसे वापस मनुष्य रूप में लौटाने से इनकार कर दिया लेकिन करणी माता की शक्ति के आगे झुकते हुए, उन्होंने उसे चूहे के रूप में पुनर्जन्म लेने की अनुमति दी।इसके बाद करणी माता ने घोषणा की कि उनके वंशज और भक्त मृत्यु के बाद चूहों के रूप में जन्म लेंगे और वे उनके मंदिर में वास करेंगे। इसी कारण से, इस मंदिर में चूहों को मारा नहीं जाता बल्कि उन्हें दूध, अनाज और मिष्ठान्न अर्पित किए जाते हैं।
सफलता आपके कदम उठाएगी करणी माता मंदिर का इतिहास करणी माता का जन्म 1387 ई. में हुआ था और वे चारण वंश से थीं। युवावस्था में ही उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग कर तपस्विनी का मार्ग अपनाया और दिव्य शक्तियाँ प्राप्त कीं। उन्हें मां दुर्गा का अवतार माना जाता है।मंदिर का निर्माण राव गंगा सिंह ने करवाया था और इसे समय-समय पर शाही संरक्षण मिलता रहा है। वर्तमान में मंदिर संगमरमर से बना है और इसकी भव्य चांदी की दीवारें, दरवाजे और गेट इसकी ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाते हैं। विदेशी पर्यटकों की भी है आस्था करणी माता मंदिर सिर्फ देशभर के श्रद्धालुओं का नहीं, बल्कि विदेशी पर्यटकों का भी केंद्र बन चुका है।
कई विदेशी श्रद्धालु और शोधकर्ता इस मंदिर की अनोखी परंपरा और चूहों के साथ सह-अस्तित्व की व्यवस्था को देखने आते हैं।वे चूहों को श्रद्धा से दूध पिलाते हैं और उस क्षण को ‘दैवीय अनुभव’ बताते हैं। कुछ पर्यटक इसे “faith beyond logic” (तर्क से परे आस्था) कहते हैं। श्रद्धा या चमत्कार? आज के वैज्ञानिक युग में भी करणी माता मंदिर एक ऐसा उदाहरण है जहाँ लोग श्रद्धा के बलबूते वह सब प्राप्त कर लेते हैं जो वे जीवन में चाहते हैं। चाहे संतान सुख की कामना हो, विवाह की इच्छा, नौकरी का सपना या बीमारी से मुक्ति – लोग मानते हैं कि यदि सच्चे मन से चूहों को दूध पिलाकर मां करणी से प्रार्थना की जाए तो कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती।