स्कूलों में अब 18 स्थानीय बोली-भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। इससे आदिवासी अंचलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी स्थानीय बोली-भाषा को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को देखते हुए यह निर्णय लिया है। CM के निर्देश पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SSCRT) ने लेखन शुरू किया है। पहले छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, हल्बी, सादड़ी, गोंडी और कुडुख भाषाओं में ग्रन्थ लिखा जाएगा। 2020 में प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई है।
इस नीति के अनुसार विद्यार्थियों को स्थानीय-बोली भाषा में पढ़ाई करानी है। एससीईआरटी के संचालक राजेंद्र कटारा ने बताया कि किताबों का लेखन शुरू कर दिया गया है। उच्च शिक्षा में भी पाठ्यक्रम का बदलाव किया जा रहा है। आइआइटी की तर्ज पर प्रदेश के हर लोकसभा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी संस्थान आरंभ करने जा रहे हैं। इसके लिए पहले चरण में रायपुर, रायगढ़, बस्तर, कबीरधाम और जशपुर में इनकी स्थापना की जाएगी।
एक सर्वे के अनुसार राज्य में 93 बोली-भाषाएं बोली जाती हैं। इनमें अलग-अलग 18 बोली-भाषाओं पर काम किया जा रहा है। इस उद्देश्य से स्थानीय बोली-भाषा विशेषज्ञों की मदद से पुस्तकें लिखी जा रही हैं। 2007 में, राज्य की स्थापना के बाद तत्कालीन सरकार ने छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिया। 2008 में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ी भाषा को मजबूत करना था।
पद्मश्री सुरेंद्र दुबे, पहले सचिव, के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ी में लगभग 1200 पुस्तकें प्रकाशित हुईं। हिंदी के व्याकरण से भी पुराना छत्तीसगढ़ी बोली-भाषा का व्याकरण हीरालाल काव्योपाध्याय ने बनाया था। इसके अलावा छत्तीसगढ़ी में लिखा एक शिलालेख बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा में है। यह 1700 ईस्वी का है। छत्तीसगढ़ की बोली-भाषा बहुत विविध है। “कोस-कोस मा पानी बदलय, चार कोस मा बानी” यहाँ एक लोकप्रिय कहावत है।
छत्तीसगढ़ उच्च शिक्षा मिशन का गठन
राष्ट्रीय शिक्षा नीति को उच्च शिक्षा में भी अपनाया गया है। इसके चलते उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम को भी रोजगारमूलक बनाया जा रहा है। राज्य में उच्च शिक्षा मिशन का गठन किया गया है।