fbpx

Total Users- 609,295

Total Users- 609,295

Wednesday, January 22, 2025

बस्तर, सांस्कृतिक राजधानी स्वर्ग जैसा सुन्दर, छत्तीसगढ.

बस्तर छत्तीसगढ़।

बस्तर ,भारत के छत्तीसगढ़ प्रदेश के दक्षिण दिशा में स्थित जिला है। बस्तर जिले एवं बस्तर संभाग का मुख्यालय जगदलपुर शहर है। यह पहले दक्षिण कौशल नाम से जाना जाता था। ख़ूबसूरत जंगलों और आदिवासी संस्कृति में रंगा ज़िला बस्तर, प्रदेश‌ की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर जाना जाता है। 6596.90 वर्ग किलोमीटर में फैला ये ज़िला एक समय केरल जैसे राज्य और बेल्जियम, इज़राइल जैसे देशॊ से बड़ा था।

ज़िले का संचालन व्यवस्थित रूप से हो सके इसके लिए 1999 में इसमें से दो अलग ज़िले कांकेर और दंतेवाड़ा बनाए गए। बस्तर जिला छत्तीसगढ़ प्रदेश के कोंडागांव, दन्तेवाडा ,सुकमा, बीजापुर जिलों से घिरा हुआ है। बस्तर का ज़िला मुख्यालय जगदलपुर, राजधानी रायपुर से 305 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

बस्तर जिले की जनसंख्या वर्ष 2011 में 834375 थी । जिसमे 413706 पुरुष एवं 420669 महिलाएं थी । बस्तर की जनसन्ख्या मे 70 प्रतिशत जनजातीय समुदाय जैसे गोंड, मारिया, मुरिया, भतरा, हल्बा, धुरुवा समुदाय हैं। बस्तर जिला को सात विकासखण्ड / तहसील जगदलपुर, बस्तर, बकावंड, लोहंडीगुडा, तोकापाल, दरभा और बास्तानार में विभाजित किया गया है।

बस्तर जिला सरल स्वाभाव जनजातीय समुदाय और प्राकृतिक सम्पदा संपन्न हुए प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सुखद वातावरण का भी धनी है।

उड़ीसा से शुरू होकर दंतेवाड़ा की भद्रकाली नदी में समाहित होने वाली करीब 240 किलोमीटर लंबी इंद्रावती नदी बस्तर के लोगों के लिए आस्था और भक्ति की प्रतीक है। इंद्रावती नदी के मुहाने पर बसा जगदलपुर एक प्रमुख सांस्कृतिक एवं हस्तशिल्प केन्द्र है।

यहां मौजूद मानव विज्ञान संग्रहालय में बस्तर के आदिवासियों की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक एवं मनोरंजन से संबंधित वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं। डांसिंग कैक्टस कला केन्द्र, बस्तर के विख्यात कला संसार की अनुपम भेंट है। बस्तर जिले के लोग दुर्लभ कलाकृति, उदार संस्कृति एवं सहज सरल स्वभाव के धनी हैं ।

बस्तर जिला घने जंगलों, ऊँची, पहाड़ियों, झरनों, गुफाओ एवं वन्य प्राणियों से भरा हुआ है। बस्तर महल, बस्तर दशहरा ,दलपत सागर, चित्रकोट जलप्रपात, तीरथगढ़ जलप्रपात, कुटुमसर और कैलाश‌ गुफ़ा आदि पर्यटन के मुख्य केंद्र हैं |

ऐतिहासिक रूप से क्षेत्र महाकाव्य रामायण में दंडकारण्य और महाभारत में कोसाला साम्राज्य का हिस्सा है।

बस्तर रियासत 1324 ईस्वी के आसपास स्थापित हुई थी, जब अंतिम काकातिया राजा, प्रताप रुद्र देव के भाई अन्नाम देव ने वारंगल को छोड़ दिया था और बस्तर में अपना शाही साम्रज्य स्थापित किया था | महाराजा अन्नम देव के बाद महाराजा हमीर देव , बैताल देव , महाराजा पुरुषोत्तम देव , महाराज प्रताप देव ,दिकपाल देव ,राजपाल देव ने शासन किया |बस्तर शासन की प्रारंभिक राजधानी बस्तर शहर में बसाई गयी थी

फिर जगदलपुर शहर में स्थान्तरित की गयी । बस्तर में अंतिम शासन महाराजा प्रवीर चन्द्र भंज देव ने 1936 से 1948 तक किया था। महाराजा प्रवीर चन्द्र भंज देव बस्तर के सभी समुदाय मुख्यतः आदिवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय थे।

‘दंतेश्वरी ‘, जो अभी भी बस्तर क्षेत्र की आराध्य देवी है , प्रसिद्ध दांतेश्वरी मंदिर दंतेवाड़ा में उनके नाम पर रखा गया है। 1948 में भारत के राजनीतिक एकीकरण के दौरान बस्तर रियासत को भारत में विलय कर दिया गया |

बस्तर जिला के उत्तर में दुर्ग, उत्तर-पूर्व में रायपुर, पश्चिम में चांदा, पूर्व में कोरापुट तथा दक्षिण में पूर्वी गोदावरी जिले हैं। यह पहले एक देशी रियासत था। इसका अधिकांश भाग कृषि के अयोग्य है। यहाँ जंगल अधिक हैं जिनमें गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियाँ निवास करती हैं।

जगंलों में टीक तथा साल के पेड़ प्रमुख हैं। यहाँ की स्थानांतरित कृषि में धान तथा कुछ मात्रा में ज्वार, बाजरा पैदा कर लिया जाता है। यहाँ के आदिवासी जंगलों में लकड़ियाँ, लाख, मोम, शहद, चमड़ा साफ करने तथा रँगने के पदार्थ आदि इकट्ठे करते रहते हैं।

बस्तर जिले की अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार कृषि और वनोपज संग्रहण है । कृषि में प्रमुख रूप से धान ,मक्का की फसल का और गेहूँ, ज्वार, कोदो, कुटकी , चना , तुअर , उड़द , तिल , राम तिल , सरसों सहायक रूप से उत्पादन किया जाता है । कृषि के अलावा पशुपालन , कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन भी सहायक भूमिका निभाते हैं ।

वनोपज संग्रहण यहाँ के ग्रामीणों के जीवन उपार्जन के प्रमुख श्रोतों में से एक है । वनोपज संग्रहण में कोषा (तसर), तेंदू पत्ता , लाख , धुप , साल बीज , इमली , अमचूर , कंद , मूल , औषधियां प्रमुख हैं। पत्थर , गिट्टी , मुरुम , फर्शी पत्थर , रेत का खनन भी अर्थव्यवस्था के सहयोगी तत्त्व हैं ।

बस्तर दशहरा के नाम से चर्चित यहाँ का दशहरा अपने आप में अनूठा है। इस दशहरे की ख्याति इतनी अधिक है कि देश के अलग-अलग भागों के साथ-साथ विदेशों से भी पर्यटक इसे देखने आते हैं। बस्तर दशहरे का आरम्भ श्रावण (सावन) के महीने में पड़ने वाली हरियाली अमावस्या से होती है। इस दिन रथ बनाने के लिए जंगल से पहली लकड़ी लाई जाती है। इस रस्म को ‘पाट जात्रा’ कहा जाता है।

यह त्योहार दशहरा के बाद तक चलता है और मुरिया दरबार की रस्म के साथ समाप्त होता है। इस रस्म में बस्तर के महाराज दरबार लगाकार जनता की समस्याएं सुनते हैं। यह त्योहार भारत का सबसे ज्यादा दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है।

मृतक स्तम्भ बस्तर में एक ऐसी अनोखी परम्परा है जिसमें परिजन के मरने के बाद उसका स्मारक बनाया जाता है जिसे ‘मृतक स्तम्भ’ के नाम से जाना जाता है। दक्षिण बस्तर में मारिया और मुरिया जनजाति में मृतक स्तम्भ बनाए बनाने की प्रथा अधिक प्रचलित है। स्थानीय भाषा में इन्हें “गुड़ी” कहा जाता है। प्राचीन काल में जनजातियों में पूर्वजों को जहां दफनाया जाता था वहां 6 से 7 फीट ऊंचा एक चौड़ा तथा नुकीला पत्थर रख दिया जाता था।

More Topics

बिलासपुर: कोटा क्षेत्र में हत्या का मामला, आरोपी गिरफ्तार

बिलासपुर जिले के कोटा थाना क्षेत्र में घरेलू विवाद...

कंतारा: चैप्टर 1 – ऋषभ शेट्टी की बहुप्रतीक्षित पैन-इंडिया फिल्म

'कंतारा: चैप्टर 1' को लेकर दर्शकों के बीच जबरदस्त...

Follow us on Whatsapp

Stay informed with the latest news! Follow our WhatsApp channel to get instant updates directly on your phone.

इसे भी पढ़े