छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मौत के पूर्व दिए गए बयान को सही माना है। इसके साथ ही मामले के आरोपी को दोषी ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि अगर फिटनेस पत्र के साथ मरीज मौत के पूर्व कार्यकारी मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में बयान देता है तो वह सही है। साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी की है कि मरता हुआ आदमी शायद ही कभी झूठ बोलता है।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि मौत से पहले दिए गए बयान पर भरोसा किया जा सकता है। वहीं, इसके लिए शर्त है कि मरीज को डॉक्टर ने फिटनेस प्रमाण पत्र दिए हो कि वह बयान देने के लिए फिट है। साथ ही मरीज का बयान कार्यकारी मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में दर्ज होगा। इस टिप्पणी के साथ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने 18 वर्षीय लड़की को जलाकर मार डालने के लिए दो लोगों की सजा को बरकरार रखा है।
ये है मामला
मामला 16-17 अगस्त, 2020 की रात का है, जब बलौदा बाजार जिले के सुहेला में गंगा यादव की जलने से मौत हो गई थी। अभियोजन पक्ष के मामले में कहा गया कि यादव समाज भवन में हुए विवाद के बाद अजय वर्मा ने गंगा को आग लगा दी थी। वर्मा और सह-आरोपी अमनचंद रौतिया को बलौदा बाजार-भाटापारा ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था। वर्मा को हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। दोनों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
मौत से पहले मृतक ने दिए थे बयान
अभियोजन पक्ष की दलीलों का केंद्र गंगा का मृत्युपूर्व बयान था, जिसे कार्यकारी मजिस्ट्रेट अंजलि शर्मा ने डॉ. दीपिका सिन्हा द्वारा यह प्रमाणित किए जाने के बाद दर्ज किया था। वह अपना बयान देने के लिए फिट था। अपनी मौत से पहले बयान में गंगा ने स्पष्ट रूप से कहा कि अजय वर्मा ने उस पर मिट्टी का तेल डाला और उसे आग लगा दी। अदालत ने कहा कि डॉ. सिन्हा के हस्ताक्षर वाले मृत्युपूर्व बयान ने रिकॉर्डिंग के दौरान उसकी मौजूदगी की पुष्टि की और उस समय गंगा के बोलने की क्षमता का समर्थन किया।
बचाव पक्ष ने उठाए थे सवाल
बचाव पक्ष ने मृत्युपूर्व बयान की प्रामाणिकता को चुनौती दी, जिसमें जबरदस्ती की संभावना का सुझाव दिया गया और कथित प्रक्रियागत अनियमितताओं का तर्क दिया गया। हाईकोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और इस बात पर जोर दिया कि मृत्युपूर्व बयान की वैधता या इसमें शामिल अधिकारियों की ईमानदारी को बदनाम करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया।
मरा हुआ व्यक्ति कभी झूठ नहीं बोलता
न्यायाधीशों ने कहा कि हमारा भारतीय कानून भी इस तथ्य को मान्यता देता है कि एक ‘मरता हुआ आदमी शायद ही कभी झूठ बोलता है’ या दूसरे शब्दों में ‘सत्य मरते हुए आदमी के होठों पर होता है’। पीठ ने फोरेंसिक सबूतों का भी हवाला दिया कि जिसमें जले हुए कपड़े और केरोसिन के निशान वाली एक बोतल की बरामदगी शामिल है। साथ ही गवाहों के बयान जो मृत्युपूर्व बयान में वर्णित परिस्थितियों की पुष्टि करते हैं।
हत्या का दोषी है वर्मा
वहीं, अपने फैसले में, हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों को बरकरार रखा कि वर्मा हत्या का दोषी था और रौतिया सबूतों से छेड़छाड़ में शामिल था।