प्लास्टिक आज हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है लेकिन यह सस्ता, टिकाऊ और हर जगह आसानी से उपलब्ध होने वाला प्लास्टिक हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण और जीव-जंतुओं के लिए कितना खतरनाक हैं, शायद आप ये नहीं जानते। प्लास्टिक में पाए जाने वाले बिसफेनॉल-A (BPA) और अन्य रसायन शरीर में हार्मोन असंतुलन, कैंसर, प्रजनन क्षमता में कमी और मस्तिष्क संबंधी कई समस्याएं पैदा कर सकते हैं। जब आप गर्भ भोजन या पानी में प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग करने से ये रसायन भोजन में मिल जाते हैं। प्लास्टिक को जलाने से डायऑक्सिन, फ्यूरान जैसी ज़हरीली गैसें निकलती हैं जो वातावरण को प्रदूषित करती हैं और सांस संबंधी बीमारियों को बढ़ाती हैं।
महिलाओं के पीरियड्स को भी ये प्रभावित करती हैं। अर्ली प्यूबर्टी यानि कि बच्चों में यौवन का सामान्य उम्र से पहले शुरू होना है। अब लड़कियों को 8-9 साल की उम्र में या उससे पहले ही पीरियड्स शुरू हो रहे है जिसका मुख्य कारण अनहैल्दी लाइफस्टाइल है। कैमिकल्स युक्त भोजन, खराब पर्यावरण ये सब महिला को पीरियड्स साइकिल को प्रभावित करता है। वहीं इसका जिम्मेदार प्लास्टिक को भी माना जाता है जिन घरों में महिलाएं एवमं बच्चियां प्लास्टिक से बने बर्तन बोतलें-डिब्बों, पैकेट, प्लास्टिक के लिफाफे आदि का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उन्हें भी अर्ली प्यूबर्टी की समस्या होती है।
स्त्री रोग विशेषज्ञ, बांझपन व आईवीएफ स्पैशलिस्ट डॉ. सुकीर्ति शर्मा के अनुसार, महिलाओं के पीरियड्स खराब होने का मुख्य कारण खराब क्वालिटी का खान, प्रदूषण और खराब लाइफस्टाइल है। प्लास्टिक के चलते भी महिला के पीरियड्स प्रभावित होते हैं। प्लास्टिक की बोतलें, दूध के पेकेट यह सब चीजें जिन घरों में अधिक इस्तेमाल होती हैं उन महिलाओं को उम्र से पहले पीरियड्स आने की संभावना अधिक रहती है प्लास्टिक में मौजूद कुछ रसायन शरीर में ‘एस्ट्रोजन’ नामक हार्मोन को बढ़ा देते हैं।
प्लास्टिक और हार्मोनल असंतुलन
प्लास्टिक में पाए जाने वाले रसायन जैसे बिसफेनॉल-A (BPA) और फ्थेलेट्स शरीर के हार्मोन सिस्टम को प्रभावित करते हैं। ये रसायन एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन की नकल करते हैं और शरीर में उसका स्तर बढ़ा सकते हैं। इसका असर महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता, पीसीओडी/पीसीओएस, और गर्भधारण में कठिनाई के रूप में दिख सकता है, जबकि पुरुषों में स्पर्म काउंट में कमी और हार्मोनल कमजोरी हो सकती है।