भारत की धरती पर कई जगह ऐसी हैं, जो अपनी अनोखी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसे ही एक गांव का नाम ‘जोंग’ है, जो अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले में स्थित है। डोंग भारत के सबसे पूर्वी हिस्से में स्थित है। यह प्राचीन संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और अनोखे भौगोलिक तथ्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह गांव भारत-चीन सीमा के पास स्थित है। यहां की भौतिक सुंदरता और शांति अपने आप में एक अलग अनुभव देती है। डोंग गांव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सूर्य दिन में दो बार उगता है, जो दुनिया के किसी और कोने में देखने को नहीं मिलता। 1999 में, यह पता चला कि अरुणाचल प्रदेश में डोंग, जो भारत में सबसे पूर्वी स्थान भी है, देश के पहले सूर्योदय का अनुभव करता है।
अर्थात भारत का सबसे पूर्वी भाग होने की वजह से सूरज की पहली किरण यहीं पड़ती है। डोंग वैली लोहित और सती नदियों का संगम एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है। इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो दो प्राचीन नदियाँ एक साथ एक दूसरे के साथ विलीन हो रही हैं, जो भव्य पहाड़ों और मेघों के बादल की पृष्ठभूमि में स्थित हैं।
पृथ्वी की अक्ष और इसके गोलाकार होने के कारण सूर्य के उगने और डूबने का समय दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग होता है। डोंग गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह एक घाटी के बीच में स्थित है। यह घाटी दो ऊंचे पहाड़ों से घिरी हुई है। इस स्थिति के कारण, सूर्य की किरणें सबसे पहले डोंग गांव में पहुंचती हैं। दिन के प्रथम प्रहर में सूर्य उगता है और जब यह घाटी के एक हिस्से के पीछे छुप जाता है तो एक बार के लिए यहां अंधेरा छा जाता है।
फिर जब सूर्य घाटी के दूसरे क्षेत्र में से उगता है, तब लोगों को लगता है कि सूर्य ने दिन में दूसरी बार उगने का काम किया है।यह भौगोलिक घटना समझने के लिए यह जरूरी है कि हम पृथ्वी की प्राकृतिक घटनाओं को समझें। पृथ्वी का घूमाव और इसकी धुरी की झुकी हुई दिशा इस प्रक्रिया को संभव बनाती है। डोंग गांव का पूर्वी स्थान होने के कारण, यह सूर्य की पहली किरणों को देखने वाला भारत का प्रथम क्षेत्र है।
गांव के लोग और उनका जीवन
डोंग गांव में रहने वाले लोगों का जीवन साधारण परंतु प्रेरित करने वाला है। यहां की जनसंख्या बहुत कम है। लोग प्रमुख रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं। यहां के लोग मिश्मी जनजाति के समुदाय से संबंधित हैं। मिश्मी जनजाति के लोग अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और संस्कृति को बनाए रखने में विश्वास रखते हैं।
अनकहे जीवन की झलक
डोंग गांव के लोगों का जीवन प्रकृति के साथ जुड़कर जीने का एक अद्भुत उदाहरण है। यहां लोग प्रकृति के नियम और समय के अनुसार अपनी दिनचर्या का निर्धारण करते हैं। सुबह का समय सूर्य के उगते ही शुरू होता है। लोग खेतों में काम करने निकल जाते हैं। दिन के मध्य तक काम करने के बाद वे छोटा सा विश्राम लेते हैं।फिर सूर्य के दूसरी बार उगने के बाद अपने काम को दोबारा प्रारंभ करते हैं।
मिश्मी जनजाति के लोग अपने हस्तशिल्प और हाथ से बने कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका खाना-प्रथा भी उनकी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्थानीय व्यंजन जैसे कि ‘बांस की कोंपल की करी’ और ‘मिश्मी चाय’ विदेशी यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्रकृति के करीब रहकर जीने वाले ये लोग शांत और संतोषित जीवन का उदाहरण हैं।
प्रमुख आकर्षण
डोंग गांव की सबसे बड़ी प्रमुखता उसका प्राकृतिक सुंदरता और अनोखा सूर्योदय है। इस अनुभव को देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। परंतु यह गांव सिर्फ अपनी भौगोलिक विशेषताओं तक सीमित नहीं है। यहां के प्राकृतिक स्रोत, वन्य जीवन और अनोखी संस्कृति भी बहुत कुछ कहती हैं।