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लंबे समय बाद छत्‍तीसगढ़ भाजपा की कमान ऐसे नेता को सौंपी गई, जो रमन सरकार में नहीं रहा शामिल

ऐसा पहली बार हुआ जब केंद्रीय संगठन ने ऐसे नेता को कमान सौंपी है, जो रमन सरकार में किसी पद पर नहीं रहा।

रायपुर। छत्तीसगढ़ में भाजपा लंबे समय बाद पूर्व मुख्यमंत्री डा रमन सिंह की छाया से बाहर निकलती नजर आ रही है। 15 साल की सत्ता गंवाने और भाजपा के सिर्फ 14 विधायक बचने के पीछे यह तथ्य सामने आया कि जनता रमन सरकार के चेहरों से नाराज थी। तीन बार सरकार बनने के बाद भी प्रदेश के चुनिंदा 20 नेताओं के हाथ में भाजपा खेलती रही। ऐसा पहली बार हुआ, जब केंद्रीय संगठन ने एक ऐसे नेता को कमान सौंपी है, जो रमन सरकार में किसी पद पर नहीं रहे।

भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के खिलाफ भाजपा नेता जब भी कोई आरोप लगाते हैं, तो कांग्रेस सरकार से लेकर संगठन यह हवाला देते थे कि रमन सरकार में भी ऐसा हुआ है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा ने जब भी कांग्रेस को घेरने की कोशिश की, तब कांग्रेस ने रमन सरकार के भ्रष्टाचार को उठा दिया। परिणाम यह हुआ कि पौने चार साल में भाजपा जनता के बीच भरोसा पैदा नहीं कर पाई। यही नहीं, कार्यकर्ताओं में भी निराशा का कारण शीर्ष पदों पर बैठे डा रमन के करीबी नेताओं को ही माना जाता रहा है।

भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी ने बस्तर और सहप्रभारी नितिन नबीन ने सरगुजा में जब पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से इस मुद्दे पर चर्चा की, तब भी यही जवाब आया कि संगठन में नए नेता को जिम्मेदारी दी जाए। केंद्रीय संगठन ने प्रदेश प्रभारी और सहप्रभारी की रिपोर्ट के बाद क्षेत्रीय संगठन मंत्री की नियुक्ति की। अजय जामवाल ने तीन दिन तक प्रदेश में हर स्तर के पदाधिकारियों से संवाद किया। उस संवाद का लब्बोलुआब यह निकला कि वर्तमान नेतृत्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का जवाब देने में सक्षम नहीं है। इसके बाद केंद्रीय संगठन ने बदलाव का फैसला लिया और अस्र्ण साव के रूप में नए प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी की। साव को न तो किसी गुट का नेता माना जाता है, न ही संगठन में किसी पद पर रहे हैं। संघ पृष्ठभूमि से आने के कारण साव संगठन के साथ संघ को लेकर चल सकते हैं। चर्चा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में संघ कार्यकर्ताओं ने भाजपा का साथ पूरी तरह से छोड़ दिया था, जिसके कारण इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष बन सकते हैं साय

विष्णुदेव साय को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के बाद केंद्रीय संगठन उनको बड़ी जिम्मेदारी देने पर विचार कर रहा है। चर्चा है कि साय को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। इससे पहले छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेता नंदकुमार साय को आयोग का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। प्रदेश संगठन में बदलाव से पहले केंद्रीय नेताओं ने अजय जामवाल की मौजूदगी में साय से चर्चा की थी। उस समय साय के सामने यह प्रस्ताव रखा गया था। साय ने केंद्रीय नेताओं से साफ कहा कि जो भी निर्णय होगा, उनको स्वीकार होगा। साय तीन बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। वह पहली बार 31 अक्टूबर 2006 से 09 मई 2010 तक, फिर 21 जनवरी 2014 से 15 अगस्त 2014 और तीसरी बार दो जून 2020 से नौ अगस्त 2022 तक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहे।

ताराचंद साहू- 10 जनवरी 2001 से 03 फरवरी 2002

लखीराम अग्रवाल-04 फरवरी 2002 से 23 जुलाई 2002

डॉ. रमन सिंह -24 जुलाई 2002 से 19 दिसंबर 2003

नंदकुमार साय- 20 दिसम्बर 2003 से 18 नवंबर 2004

शिवप्रताप सिंह '9 नवंबर 2004 से 30 अक्टूबर 2006

विष्णुदेव साय- 31 अक्टूबर 2006 से 09 मई 2010

रामसेवक पैकरा- 10 मई 2010 से 20 जनवरी 2014

विष्णुदेव साय-21 जनवरी 2014 से 15 अगस्त 2014

धरमलाल कौशिक '6 अगस्त 2014 से 07 मार्च 2019

विक्रम उसेंडी - 08 मार्च 2019 से 01 जून 2020

विष्णुदेव साय- दो जून 2020 से नौ अगस्त 2022

 

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