अब दुनिया पढ़ेगी छत्तीसगढ़ के आदिवासी जननायकों की गाथा
रायपुर। अब तक गुमनाम रहे स्वतंत्रता के आदिवासी जननायकों की कहानी अब दुनिया पढ़ेगी। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के ऐसे 200 आदिवासी जननायकों की गाथा का संग्रह किया है, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। ये ऐसे आदिवासी नायक हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष का नेतृत्व किया और अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। 'आदि विद्रोह: छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह एवं स्वतंत्रता संग्राम के आदिवासी जननायक गंथ्र में छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन के बलिदानियों के जीवन वृतांत को संकलित किया गया है।
सोनाखान के राजा वीर नारायण सिंह 1857 की क्रांति के राज्य के प्रथम बलिदानी योद्धा थे। उन्हें रायपुर के जयस्तंभ चौक पर फांसी दी गई थी। परलकोट के जमींदार ठाकुर गैंद सिंह को आदिवासी विप्लव के बाद 1825 में उनके महल के सामने फांसी दी गई। 1910 के भूमकाल विद्रोह में बस्तर के जननायक गुंडाधुर ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। किंवदंती है कि वे उड़ सकते थे। ग्रंथ में ऐसे जननायकों की गाथाएं हैं जो किंवदंती बन गए और लोकगीतों व कथाओं का हिस्सा हैं।
अंग्रेजी तोप का मुकाबला तीर धनुष से: बस्तर के भूमकाल विद्रोह में बुद्धू मांझी गुंडाधुर के प्रमुख सहयोगी थे। एक व्यक्ति को बैंगन चोरी के इल्जाम में पुलिस ने बहुत मारा। यह देख बुधु मांझी ने तीर धनुष से लैस आदिवासियों की सेना तैयार की और अंग्रेज पुलिस से भिड़ गए।
जंगल सत्याग्रह के बलिदानी रामधीन गोंड: 1939 में राजनांदगांव में जंगल सत्याग्रह हुआ। यह भारत का पहला जंगल सत्याग्रह था। सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे रामधीन गोंड पुलिस की गोलीबारी में बलिदान हो गए।
सुखदेव अब बने सेनानी: 1941-42 में झंडा सत्याग्रही के रूप में सुखदेव पातर का नाम दर्ज है। राज्य सरकार ने अब जाकर सुखदेव पातर को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिया है।
मुख्यमंत्री आज करेंगे विमोचन
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विश्व आदिवासी दिवस पर इस ग्रंथ का विमोचन करेंगे। इसे आदिमजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान की संचालक शम्मी आबिदी के निर्देशन व संपादन में प्रज्ञान सेठ, डा. अनिल विरूलकर, मीना धनेलिया, अंकिता कुंजाम, अमर दान, निर्मला बघेल, आंनद सिंह और योगेंद्र निषाद ने तैयार किया है।
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