बीएसपी यूनियन मान्यता चुनाव में नकारत्मक वोटिंग ने चौंकाया
भिलाई। भिलाई इस्पात संयंत्र के यूनियन मान्यता के चुनाव में इस बार अंतिम समय तक काफी उलट फेर देखा गया ।अंततः सामने आए परिणाम भी चौंकाने वाले रहे। जहां हर संगठन 51 प्रतिशत के वोट की ताल ठोक रहे थे।
वहीं इन संगठनों को एक तिहाई वोट भी नसीब नहीं हुआ। इस बार वोटिंग के पैटर्न में काफी बिखराव देखा गया। एनजेसीएस के और प्रबंधन के फैसलों को लेकर पनपी नाराजगी को जहां गैर एनजेसीएस यूनियन बनाने में नाकामयाब रहे।
वही सीटू अपने कैडर की नाराजगी के बावजूद कड़ा मुकाबला देने में कामयाब रही है। इस चुनाव से एक निष्कर्ष यह भी सामने आया है कि कर्मियों का विश्वास अब भी एनजेसीएस यूनियन पर बरकरार है।
विरोध के बावजूद तीसरे स्थान पर सीटू
चुनाव में इस बार 66 महीने बीत जाने के बाद भी वेतन समझौता पूरा ना होने और ग्रेच्युटी सीलिंग के साथ साथ नई प्रमोशन पालिसी को लेकर कर्मियों में नाराजगी थी। जिसके चलते लोग बदलाव चाह रहे थे, इसलिए कर्मीचारियों ने जिताने के लिए नही हराने के लिए वोट किया।
इस चुनाव के पहले सीटू में सांगठनिक तौर पर काफी बिखराव दिख रहा था किंतु अंतिम समय में कैडर ने विचारधारा का समर्थन करते हुए भले ही वोट मांगा हो लेकिन अब भी सांगठनिक तौर पर हालात सामान्य नहीं है।
ग्रेच्युटी सीलिंग और पे स्केल पड़ा भारी
चुनाव के पहले इंटक को दो यूनियन के समर्थन मिलने के बाद जहां इंटक की स्थिति काफी मजबूत दिख रही थी । वही अन्य श्रमिक संगठनों द्वारा नकारात्मक प्रचार काफी जोर शोर किया गया। वेतन समझौते में हो रही देरी कम एमजीबी पर्क्स के साथ साथ पे स्केल लागू होने का ठीकरा भी एक यूनियन के सिर फोड़ा गया, जबकि बैठक में सभी दल शामिल थे।
युवाओं में भी दिखा बिखराव
भिलाई इस्पात संयंत्र में युवाओं द्वारा जहां एकता का नारा दिया जा रहा था। वहीं वोटिंग में उनके बीच एकता की कमी साफ नजर आई है। जहां यूआरएम और बीआरएम में कर्मचारी ने स्थानीय यूनियन को खुलकर वोट किया वहीं के कुछ डिप्लोमा इंजीनियर के वर्तमान और पूर्व पदाधिकारी भी इंटक के लिए लाबिंग करते दिखे जबकि सीटू के अध्यक्ष का स्वयं डिप्लोमा इंजीनियर होने से एक वर्ग सीटू के साथ भी गया है।
जहां युवाओं के बल पर बीएमएस 51 प्रतिशत वोट की ताल ठोक रहा था वहीं 30 प्रतिशत वोट भी हासिल नहीं कर पाया, जबकि चुनाव में 3000 एसीटी और ओसीटी के समर्थन का दावा किया गया था।
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