IMD प्रमुख मृत्युंजय महापात्र बोले- 'मौसम एजेंसियों की सटीक भविष्यवाणी पर पड़ा जलवायु परिवर्तन का असर'
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने दुनिया भर की एजेंसियों द्वारा की जा रही जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी पर प्रतिक्रिया दी है। IMD के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन ने पूर्वानुमान एजेंसियों की गंभीर घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करने की क्षमता में बाधा डाली है और दुनिया भर में मौसम ब्यूरो अवलोकन नेटवर्क घनत्व और मौसम पूर्वानुमान मॉडलिंग को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का पड़ा असर- IMD प्रमुख
IMD के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने यह भी कहा कि देश में मानसूनी वर्षा का कोई महत्वपूर्ण रुझान नहीं दिखा है। भारी वर्षा की घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है और जलवायु परिवर्तन के कारण हल्की वर्षा की घटनाओं में कमी आई है। उन्होंने आगे कहा कि हमें 1901 से मानसूनी वर्षा का डिजिटल डेटा मिला है। उत्तर, पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत के कुछ हिस्सों में वर्षा में कमी दिखाई देती है, जबकि पश्चिम में कुछ क्षेत्र जैसे कि पश्चिमी राजस्थान में वर्षा में वृद्धि दिखाई देती है।
सरकार ने संसद में दी जानकारी
भारतीय मानसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर IMD प्रमुख ने कहा कि इस प्रकार अगर हम पूरे देश पर विचार करते हैं तो कोई महत्वपूर्ण प्रवृत्ति नहीं है 27 जुलाई को सरकार ने संसद को बताया था कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मेघालय और नागालैंड ने हाल ही में 30-वर्ष की अवधि (1989-2018, दोनों वर्षों में शामिल) के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा में महत्वपूर्ण कमी देखी है। इसमें कहा गया है कि अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के साथ इन पांच राज्यों में वार्षिक वर्षा में भी उल्लेखनीय कमी आई है।
भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या में हुई वृद्धि
महापात्र ने पीटीआइ को दिए इंयरव्यू में बताया कि 1970 के बाद से दिन-प्रतिदिन वर्षा के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बहुत भारी वर्षा वाले दिनों की संख्या में वृद्धि हुई है और हल्की या मध्यम वर्षा के दिनों में कमी आई है। इसका मतलब है कि अगर बारिश नहीं हो रही है, तो बारिश नहीं होगी। अगर बारिश हो रही है, तो भारी बारिश होगी। कम दबाव प्रणाली होने पर बारिश अधिक तीव्र होती है। यह उष्णकटिबंधीय में पाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण रुझानों में से एक है। अध्ययनों ने साबित किया है कि भारी वर्षा की घटनाओं में यह वृद्धि और हल्की वर्षा में कमी जलवायु परिवर्तन के कारण है।
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