साध्वी स्नेहयशा का प्रवचन में संदेश, आनंद से रहना सीख जाओ, सारे दुख-दर्द खत्म हो जाएंगे
साध्वी ने कहा कि भक्तिभाव में लीन होकर जब कोई व्यक्ति थिरकने लगता है, तो यह समझ लीजिए कि वह आनंदित है।

रायपुर। आनंद, मजा और खुशी तीनों का अनुभव अलग-अलग है। पहला मजा है, यह बाहरी होता है। दूसरा होता है सुख, यह भौतिक वस्तुओं से प्राप्त होता है। वहीं, तीसरा आनंद है, यह आत्मा से आता है। यह हमें बाहर नहीं मिल सकता है। एक बार आदमी अपने अंदर ही डुबकी लगाए तो उसे वहां आनंद मिल जाएगा। उक्त बातें न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में साध्वी स्नेहयशा ने कही।
साध्वी ने कहा कि भक्तिभाव में लीन होकर जब कोई व्यक्ति थिरकने लगता है, तो यह समझ लीजिए कि वह आनंदित है। वह आनंद के साथ नाचने लगे तो उसे रोकना भी मुश्किल हो जाता है। उसके हाथ पैर थक भी जाए तो भी उसे आनंदित रहते हुए किसी दर्द का एहसास नहीं होता। हमारा जीवन गुलाब के फूल की तरह होता है। जो व्यक्ति गुलाब लेने जाता है उसे कांटों से भी जूझना पड़ता है। इतने कांटों के बीच रहकर भी गुलाब मुस्कुराते रहता है। यह भी एक कला है। गुलाब, जरा भी झुके तो उसकी मुश्किलें बढ़ जाती है। परिस्थिति कितनी भी मुश्किल हो, लेकिन गुलाब हमेशा मुस्कुराते रहता है। लोग जबरदस्ती तनाव लेते हैं। तनाव के दौरान भी आप अपने अंदर झांकें तो आपको आनंद का एहसास होगा।
नाम आपका नहीं, शरीर का
साध्वी ने कहा कि कोई कुछ बोले तो यह सोचना कि वह आपके शरीर को बोल रहा है। कोई अगर आपको नाम से बोले तो भी आप ही सोचना कि वह आपके शरीर को बोल रहा है। क्योंकि आत्मा का कोई नाम नहीं होता, कोई पहचान नहीं होती। पहचान शरीर की होती है। जान रहते तक ही शरीर का नाम रहता है। जब भी सम्मान मिले या अपमान भी हो तो आप सब को अपने अंदर पचा लो। कभी माता-पिता आपको डांट दें तो मुस्कुरा कर उनकी बातों को टाल दीजिए।
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