• 03-05-2024 07:13:01
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गुस्ताखी माफ़ / शायरी

शायरी कलेक्शन भाग 5 : मिली-जुली शायरियां

पिछले हफ्तों में मैंने मज़ेदार शायरिया , जोश भर देने वाली व मंच संचालन के
वक़्त बोली जा सकने वाली शायरियों के संकलन को आपके सामने प्रस्तुत किया था
. पिछली बार हिन्दी के प्रख्यात लेखक दुष्यंत कुमार के कुछ खास व प्रसिद्ध
रचनाएं आपके समक्ष प्रस्तुत की थीं , जिनका बहुधा भाषणों में प्रयोग किया जाता
है . इस बार मिली-जुली शायरियां जो कि महफिलों में सहजता से बोली- सुनी
जाती हैं - मधुर चितलांग्या

और भी ग़म हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों
तेरे वादों पे कहाँ तक मेरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना कि मेरी आस टूट जाए

न कोई वादा न कोई यक़ीं न कोई उम्मीद
मगर हमें तो तेरा इंतज़ार करना था
ये कह कह कर हम अपने दिल को बहला रहे हैं
वे अभी निकल चुके हैं , वे अभी आ रहे हैं

मोहब्बत खुद बताती है, कहाँ किसका ठिकाना है,
किसे आँखों में रखना है, किसे दिल में बसाना है..

दरिया ने झरने से पूछा , तुझे समन्दर नहीं बनना है क्या..?
झरने ने बड़ी नम्रता से कहा , बड़ा बनकर खारा हो जाने से अच्छा है 
छोटा रह कर मीठा ही रहूँ
हर से खतरनाक है ये मोहब्बत,
ज़रा सा कोई चख ले तो मर मर के जीता है

बस इतनी सी बात पर हमारा परिचय तमाम होता है,
हम उस रास्ते नही जाते जो रास्ता आम होता है
सुना है आज समंदर को बड़ा गुमान आया है,
उधर ही ले चलो कश्ती जहां तूफान आया है

वो छोटी-छोटी उड़ानों पे गुरूर नहीं करता
जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूंढता है

अगली बार फिर किसी अन्य विषयवस्तु व मिजाज़ पर शायरी संकलन आपके सामने प्रस्तुत करूंगा - मधुर चितलांग्या, संपादक , पूरब टाइम्स

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