विदेशों से किये राजनायिक समझौतों का विश्लेषण कर उसे चुनावी मुद्दा बनाना उचित है या नहीं ? क्या किसी राजनेता को उसके अपराध के लिये पकड़ने के लिये , चुनाव बीतने तक रुकना चाहिये या नहीं ?
गुस्ताखी माफ
विदेशों से किये राजनायिक समझौतों का विश्लेषण कर उसे चुनावी मुद्दा बनाना उचित है या नहीं ? क्या किसी राजनेता को उसके अपराध के लिये पकड़ने के लिये , चुनाव बीतने तक रुकना चाहिये या नहीं ?
पत्रकार माधो की पत्रकारों की चौपाल में आज इन दो सवालों पर घमासान मच गया . पहला पत्रकार साथी बोला, यदि सबूत पक्के हैं तो उस राजनेता को अपने अपराधों के लिये तुरंत पकड़ लिया जाना चाहिये . अपने राजनीतिक लाभ के लिये सत्ता पक्ष द्वारा उसे पकड़ने के लिये चुनाव आने तक , उसे रोके रखना , अनुचित है . तुरंत दूसरा साथी बोला , केजरीवाल मामले में केंद्र की भाजपा सरकार का रोल ठीक नहीं रहा . ऐन चुनाव के वक़्त ईडी के द्वारा केजरीवाल को पकड़ना, प्रत्यक्ष रूप से बिना लड़ने दिये , आम आदमी पार्टी की चुनौती को खत्म करने की साज़िश की तरह दिखती है . वैसे, इसका जितना फायदा भाजपा को हुआ , उतना माइलेज विपक्षी पार्टियां भी ले रही हैं. 31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में 27 विपक्षी पार्टियों के नेता जुटे और लोकतंत्र बचाने का संकल्प जताया. उन्होंने नारा दिया गया ‘तानाशाही हटाओ, लोकतंत्र बचाओ’. सवाल यह है कि क्या देश के लोग मान रहे हैं कि भारत में तानाशाही आ गई है और लोकतंत्र खतरे में है? इसका जवाब , आज की तारीख में आम जनता , “ नहीं “ के रूप में देकर भाजपा को प्रचण्ड बहुमत से जिताएंगी . अब तीसरा साथी बोला, भाजपा की तरफ से लड़ाई लोकसभा में बहुमत के लिये नहीं दिखती है बल्कि एनडीए के 400 या बीजेपी के 370 सीटों के लिये ही दिखती है . इसके लिये मोदीजी और अमित शाह हर तरह के पैंतरे आजमा रहे हैं . चुनाव के बीच कच्चातिवु द्वीप मामला उठाकर भाजपा साउथ में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में है . अब चौथा साथी बोला , आज की परिस्थिति का मैसेज यह है कि भाजपा जीत का जितना भरोसा दिखा रही है , उतना असल में है नहीं है. क्योंकि अगर इतना भरोसा होता तो दूसरी पार्टियों खास कर कांग्रेस के नेताओं को तोड़ कर उन्हें भाजपा में शामिल कराने और टिकट देकर चुनाव में उतारने का काम इतने बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा होता. दूसरा मैसेज यह है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा की लड़ाई असली नहीं है, बल्कि दिखावा है. उसकी सरकार सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कर रही है और उनमें से भी जो भाजपा में शामिल हो जा रहा है ‘भाजपा की वॉशिंग मशीन’ में धुलाई करके उसको बेदाग कर दिया जा रहा है. विपक्ष ने चुनावी बॉन्ड का मुद्दा उठा कर यह भी बताया है कि सरकार तमाम दावों के बावजूद दूध की धुली नहीं है . अब मैं बोला, चुनाव के वक़्त हर पार्टी अपनी कमीज़ उजली और अपने विपक्षी की मैली दिखाने की कोशिश करती है . यह कोई नई बात नहीं है परंतु भाजपा द्वारा श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप द्वीप मामला उठाने और जवाब में कांग्रेस द्वारा मोदी सरकार द्वारा बांग्लादेश को 110 द्वीप दिये जाने की बात उठाना , हमारे देश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीयता के लिये घातक हो सकती है. किसी भी दूसरे देश से किये गये समझौते उस समय की परिस्थिति और आवश्यकता के मद्दे-नज़र होते हैं . अंत में पत्रकार माधो बोले, अभी सवाल यह है कि क्या विपक्षी पार्टियों का जो प्रयास है वह चुनावी लड़ाई की दिशा मोड़ने के लिए पर्याप्त है ? कम से कम अभी ऐसा नहीं लग रहा है . उधर भाजपा भी 370 सीटों के लिये अनिश्चितता में है इसलिये कमज़ोर विपक्ष के सामने नाना प्रकार के दांव चल रही है .
इंजी. मधुर चितलांग्या,संपादक , दैनिक पूरब टाइम्स
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