कम शब्दों में समझें 'लोक अदालत' के मायने, कैसे मिलता है आम लोगों को इससे फायदा
पूरब टाइम्स। लोक अदालत कम से कम वक्त में विवादों को निपटाने के लिए एक आसान और अनौपचारिक प्रक्रिया का पालन करता है. लोक अदालत का आदेश या फैसला आखिरी होता है. इसके फैसले के बाद कहीं अपील नहीं की जा सकती.
क्या है लोक अदालत?
लोक अदालत सुलह कराने की नियत से शुरू की गई थी. यह ऐसा तंत्र है जिसके जरिए कानूनी विवादों को अदालत के बाहर हल कर लिया जाता है. कह सकते हैं कि मामलों के निपटारे का वैकल्पिक माध्यम है. इसे बोलचाल की भाषा में 'लोगों की अदालत' भी कहते हैं. यह कम से कम वक्त में विवादों को निपटाने के लिए एक आसान और अनौपचारिक प्रक्रिया का पालन करता है. लोक अदालत का आदेश या फैसला आखिरी होता है. इसके फैसले के बाद कहीं अपील नहीं की जा सकती. लोक अदालत सभी दीवानी मामलों, वैवाहिक विवाद, भूमि विवाद, बंटवारे या संपत्ति विवाद, श्रम विवाद आदि गैर-आपराधिक मामलों का निपटारा करती है.
कब शुरू किया गया?
साल 1976 में 42वां संविधान संशोधन हुआ, जिसके तहत अनुच्छेद 39 में आर्थिक न्याय की अवधारणा जोड़ी गई. यहां सरकार से उम्मीद की गई कि वह यह सुनिश्चित करे कि देश का कोई भी नागरिक पैसों की कमी या दूसरी वजहों से न्याय पाने से वंचित न रह जाए. इसके बाद सबसे पहले साल 1980 में केंद्र सरकार के निर्देश पर सारे देश में कानूनी सहायता बोर्ड का कयाम किया गया. फिर बाद में इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया गया. यह अधिनियम नौ नवंबर, 1995 को लागू हुआ और विधिक सहायता और स्थायी लोक अदालतें अस्तित्व में आईं.
लोक अदालत की ताकत
लोक अदालत को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल कार्यवाही की शक्ति होगी. इसके पास किसी गवाह को समन भेजना और शपथ दिलवा कर उसकी परीक्षा लेने का अधिकार है. किसी दस्तावेज़ को प्राप्त और प्रस्तुत करने का अधिकार है. किसी भी अदालत या कार्यालय से दस्तावेज की मांग करने का अधिकार है. शपथ पत्रों पर सबूतों को प्राप्त करने का अधिकार है. ऐसी सभी शक्तियां जो सिविल न्यायालय को प्राप्त होती हैं वह लोक अदालत के पास होती हैं. लोक अदालत में होने वाली कार्यवाही को भारतीय दंड संहिता,1860 के तहत निर्धारित नियमों के मुताबिक अदालती कार्यवाही माना जाएगा.
अवाम को क्या फायदा है
कोर्ट-फीस नहीं लगती.
पुराने मुकदमें की कोर्ट-फीस वापस हो जाती है.
किसी पक्ष को सजा नहीं होती. मामले को बातचीत के बाद सफाई से हल कर लिया जाता है.
मुआवजा और हर्जाना तुरन्त मिल जाता है.
मामले का निपटारा जल्दी हो जाता है.
सभी को आसानी से न्याय मिल जाता है.
फैसला आखिरी होता है.
फैसले के खिलाफ कहीं अपील नहीं होती है.
पिछले साल कितने मामले निपटाए गए?
साल 2021 में देश भर में लगी लोक अदालतों के जरिए तीन करोड़ 26 लाख 61 हजार 963 मामलों की सुनवाई हुई. इनमें से 1 करोड़ 27 लाख 87 हजार 329 मामलों का निपटारा किया गया. सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट्स और ट्रायल कोर्ट्स में एक साथ हजारों अदालतें लगीं. कुल निपटाए गए मामलों में तो 55 लाख 81 हजार 117 मामले तो अदालती फाइलों में गए बिना ही निपटा दिए गए यानी प्री लिटिगेशन स्टेज पर ही उन्हें नक्की कर दिया गया. निपटाए गए मामलों में अपराधिक, सिविल, पारिवारिक, बैंकिंग लोन रिकवरी, भू राजस्व, लेबर, बिजली पानी बिल, सर्विस मैटर्स भी शामिल थे.
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