• 20-04-2024 18:03:21
  • Web Hits

Poorab Times

Menu

रायपुर

ग्राउंड वॉटर रिचार्ज में होता था इस्तेमाल; मौर्य, गुप्त और कुषाण काल के अवशेष भी मिले

छत्तीसगढ़ में मिला 2500 साल पुराना टेराकोटा का कुंआ

रायपुर।  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के पास रीवां गांव में धरती के भीतर से अब तक की सबसे पुरानी सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यहां पर टेराकोटा के रिंग से बना एक कुंआ मिला है। इसका उपयोग भूमिगत जल को रिचार्ज करने में किया जाता था। अनुमान है कि यह कुंआ ईसा से 500-600 साल यानी आज से 2500 साल से भी अधिक पुराना हो सकता है।पुरातत्व विभाग की ओर से खुदाई की देखरेख में लगे पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के शोधार्थी अमर भारद्वाज ने बताया, प्राचीन काल में इस तरह के रिंग वेल बनाए जाते थे। इसका मुख्य काम पानी को बर्बाद होने से बचाना था। अतिरिक्त पानी इस वेल के जरिए जमीन में भेज दिया जाता था। इससे एक-एक बूंद पानी संरक्षित होता था और भूमिगत जल का स्तर भी मेंटेन रहता था। यहां अभी एक ही कुंआ मिला है। खुदाई आगे बढ़ेगी तो संभव है कि और भी कुएं मिले।रीवां में मिले इस प्राचीन कुएं को टेराकोटा से बने 11 रिंग की मदद से बनाया गया है। संभावना है कि इसके ऊपर और भी रिंग रहे हों जो अब क्षतिग्रस्त हो गए। अमर भारद्वाज ने बताया, उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ पुरातात्विक साइट पर एक लाइन में दो से अधिक रिंग वेल भी मिले हैं। रीवां और आसपास के इलाके में आज भी पानी की समस्या है। यहां भूमिगत जल काफी नीचे है। हो सकता है कि प्राचीन काल में भी लोग इस समस्या से जूझ रहे हों। इसलिए उन्होंने ग्राउंड वॉटर रिचार्ज करने के लिए इस तरह की संरचनाएं बनाकर पानी सहेजा। पुरातत्व विभाग के उप संचालक प्रताप चंद पारख का कहना है, इस कुएं का उपयोग पानी पीने के लिए भी होता होगा और अतिरिक्त पानी को संरक्षित करने में भी। यह एक बड़ी खोज है जो छत्तीसगढ़ के अब तक ज्ञात इतिहास में नए अध्याय जोड़ रही है। यह पकी मिट्‌टी (टेराकोटा) के रिंग से बना हुआ कुंआ है। कुछ इसी तरह के कुएं आंध्र प्रदेश के इलाकों में आज भी बनते हैं। फर्क यह है कि अब वह रिंग मिट्‌टी का न होकर सीमेंट का होता है। बताया जा रहा है, इस तरह के कुएं सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों में मिले थे।

यह जनपद काल से कल्चुरी शासन तक का अवशेष
प्रताप चंद पारख ने बताया, अभी तक की खुदाई में रिंग वेल के अलावा बड़ी मात्रा में सोने, चांदी व तांबे के सिक्के, मिट्‌टी के बर्तन, दीवार के अवशेष और कीमती पत्थरों के मनके मिले हैं। मिट्‌टी के अधिकतर बर्तन अपनी बनावट के हिसाब से मौर्य काल के लग रहे हैं, लेकिन कुछ सिक्के और रेड वियर्स पॉटरी इसे जनपद काल यानी 1500 से 600 ईसा पूर्व तक के इतिहास की ओर ले जाती हैं। यहां से मौर्य काल, कुषाण काल, गुप्त काल से लेकर कल्चुरी काल तक के अवशेष मिले हैं। यहां मिले अवशेषों को जल्दी ही प्रयोगशाला में भेजकर वैज्ञानिक काल निर्धारण भी करा लिया जाएगा। इसके बाद विभाग छत्तीसगढ़ के इतिहास के इस अध्याय पर नई बातें सामने रखेगा।यह पूरा इलाका करीब 80 एकड़ में फैला हुआ है। अनुमान है कि यह चारो तरफ पानी से घिरी बड़ी व्यापारिक बस्ती थी।

जिस जगह पर चल रही खुदाई वह व्यापार का बड़ा केंद्र
पुरातत्व विभाग के उप संचालक प्रताप चंद पारख का कहना है, रीवां गांव में जिस जगह पर खुदाई चल रही है वह बड़ा व्यापारिक केंद्र रहा होगा। ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि यह जगह कभी पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण के व्यापारिक मार्ग के जंक्शन पर था। इसलिए इसका बड़ा महत्व है। साइट के उत्खनन सहायक वृशोत्तम साहू ने बताया, इस जगह से बड़ी मात्रा में कीमती पत्थर के मनके, गलन भट्‌ठी जैसी संरचना और लोहा मिला है। जो कीमती पत्थर यहां से मिले हैं, वह आसपास कहीं नहीं मिलते। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है, यहां के लोग उसे बाहर से आयात कर यहां मनकों की माला, आभूषण और दूसरी वस्तुएं बनाते थे। यहीं से नावों के जरिए यहां दूसरे राज्यों में भेज दिया जाता था।

Add Rating and Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment
CAPTCHA

Your Comments

Side link

Contact Us


Email:

Phone No.