दलबदल विरोधी कानून क्या है ? कब MP, MLA को अयोग्य घोषित किया जाता है
नई दिल्ली। अक्सर नेता अपने निजी फायदों के चलते एक दल से निकलकर दूसरे दल का दामन थाम लेते हैं। इससे राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति भी पैदा हो जाती है। नेताओं के दलबदल की खबरें तो आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं। लेकिन, हमारे देश के संविधान में एक ऐसा कानून भी है, जो विधायकों और सांसदों को व्यक्तिगत फायदों के लिए दलबदल करने से रोकता है। आइए विस्तार से जानते हैं...
क्यों पड़ी दलबदल विरोधी कानून की जरूरत?
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की भूमिका सबसे अहम होती है। हम सभी जानते हैं कि राजनीतिक पार्टियां सामूहिक आधार पर फैसले लेती हैं। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीतता गया, नेताओं ने अपने हिसाब से राजनीतिक फैसले लेना शुरू कर दिया। विधायकों और सांसदों के दलबदल से सरकारें बनने और बिगड़ने लगीं। इस बात के ताजा उदाहरण के रूप में मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को देखा जा सकते हैं, जहां विधायकों के दलबदल के चलते सरकारें बदल गई। कई बार ऐसी स्थिति राजनीतिक अव्यवस्था को जन्म देती है और इससे नागरिकों के बहुमूल्य वोट भी व्यर्थ हो जाता है।
कब लागू हुआ दलबदल कानून?
साल 1985 में राजीव गांधी सरकार के अंतर्गत 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से भारत में दलबदल विरोधी कानून को पारित किया गया, जिसे संविधान की 10वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया। विधायकों और सांसदों को व्यक्तिगत फायदों के लिए दलबदल करने से रोकने के उद्देश्य से यह कानून लाया गया था।
इन स्थितियों में लागू होगा दलबदल कानून:
दलबदल कानून के तहत किसी भी विधायक या सांसद को अयोग्य घोषित किया जा सकता है अगर :
1. एक निर्वाचित सदस्य अपनी इच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ दे।
2. एक निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी पॉलिटिकल पार्टी में शामिल हो जाए।
3. कोई सदस्य सदन में पार्टी के विरोध में वोट दाल दे।
4. कोई निर्वाचित सदस्य वोटिंग में सम्मिलित होने से मना कर दे।
5. 6 माह की अवधि के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाता है।
नोट - कानून ये कहता है कि सदन के अध्यक्ष के पास किसी भी सदस्य को आयोग्य करार देने के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति होती है। साथ ही साथ अगर अध्यक्ष के ही दल से संबंधित शिकायत है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को यह अधिकार मिल जाता है।
इन स्थितियों में लागू नहीं होगा दलबदल कानून:
1. जब पूरी की पूरी पार्टी किसी अन्य राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाती है।
2. जब किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य पार्टी से अलग होकर नई पार्टी का निर्माण कर लेते हैं।
3. अगर किसी पार्टी के निर्वाचित सदस्य अपनी एक नई पार्टी बना लेते हैं।
3. यदि किसी पार्टी के मेंबर दो पार्टियों के विलय को स्वीकार नहीं करते हैं और विलय के दौरान अलग दल में रहने को प्राथमिकता देते हैं।
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