• 27-04-2024 10:13:06
  • Web Hits

Poorab Times

Menu

कौन होता है सरकारी गवाह और कैसे मिलता है उसे क्षमादान

संयुक्त रूप से किए गए अपराध में कभी-कभी यह परिस्थिति होती है कि इस संयुक्त षड्यंत्र के साथ किसी अपराध को कारित करने वाले लोगों में कोई एक भेदी गवाह (approver) बन जाता है, जिसे सरकारी गवाह भी कहा जाता है। कभी-कभी गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामले में अभियोजन पक्ष को यथेष्ट साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं, जिस कारण आरोपी को दोषमुक्त होने का अवसर मिल सकता है। अभियोजन पक्ष प्रकरण की सभी वास्तविक बातों को न्यायालय के सामने लाने हेतु अभियुक्तों में से किसी एक अभियुक्त को सरकारी गवाह बना देता है। यह अभियुक्त मामले के सभी वास्तविक तथ्यों को न्यायालय के सामने रख देता है तथा यह अपराध करने वाले अन्य लोगों से भेद कर जाता है।

ऐसी परिस्थिति में न्यायालय के पास में यह अधिकार है कि इस प्रकार के सरकारी गवाह को क्षमादान प्रदान कर सकता है। 
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 -सहिंता की धारा 306 के अंतर्गत सह अपराधी को क्षमादान दिए जाने का प्रावधान किया गया है। इस धारा में अपराधी को क्षमादान किए जाने संबंधी व्यवस्थित प्रावधान उपलब्ध हैं। 

क्षमादान कब दिया जा सकता है
किसी मामले में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबंध रखने वाले या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उस प्रकरण में जुड़े हुए व्यक्ति से साक्ष्य प्राप्त करने के उद्देश्य से न्यायालय उसे क्षमादान की शर्त पर मामले की सभी वास्तविक परिस्थितियों का स्पष्ट और सत्य प्रकटन करने का कहता है। सह अपराधी मामले की वास्तविकता का प्रकटन न्यायालय के समक्ष कर देता है तो न्यायालय द्वारा उसे क्षमादान दिया जा सकता है।

क्षमादान दिए जाने का उद्देश्य गंभीर प्रकृति के मामलों में अभियुक्तों को दंड देने के उद्देश्य से दंड प्रक्रिया संहिता में धारा 306 के अंतर्गत अभियुक्त को क्षमादान का प्रावधान रखा गया है। संयुक्त रूप से किए गए अपराध में कोई ऐसा अभियुक्त जिसका मामले से सीधा संपर्क हो उसे क्षमादान देकर अन्य अभियुक्तों को दंडित किया जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 133 के अंतर्गत सह अपराधी सक्षम साक्षी होता है।

क्षमादान दिए जाने के लिए कौन सा मजिस्ट्रेट सक्षम है
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 के अंतर्गत उन मजिस्ट्रेट का उल्लेख किया गया है जो क्षमादान दिए जाने के संबंध में सशक्त होते हैं। 1) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट 2) कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग जहां मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा महानगर मजिस्ट्रेट का संबंध है, वहां अपराध के अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी भी चरण में से अभियुक्त को क्षमादान कर सकता है, परंतु प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट केवल जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में सह अपराधी को समाधान कर सकता है। अन्वेषण के प्रक्रम में किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम वर्ग को क्षमादान दिए जाने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

सह अपराधी को इस शर्त पर समाधान किया जा सकता है कि वह अपराध की वास्तविक घटना या उससे संबंधित व्यक्तियों के बारे में न्यायालय को यथेष्ट तथा सही सही जानकारी देगा, यह शर्त पूर्ण होना चाहिए, क्षमादान उसी परिस्थिति में दिया जाता है जब व्यक्ति सह अपराधी होता है।

कौन से अपराधों में क्षमादान दिया जा सकता है
 दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 उन अपराधों का भी उल्लेख करती है, जिनमे क्षमादान दिया जा सकता है। ऐसे अपराध निम्न हैं

1) वह अपराध जो सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं। 
2) वह अपराध जो दंड विधि संशोधन अधिनियम 1952 के अधीन नियुक्त विशेष न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं। 
3) ऐसे अपराध जो 7 वर्ष तक यह इससे अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हैं। 

मामले की सुपुर्दगी - दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 की उपधारा 5 के अंतर्गत यदि सुनवायी करने वाला मजिस्ट्रेट सक्षम नहीं है और मामला सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है तो ऐसे मामले को सेशन न्यायालय के सुपुर्द कर देगा। धारा 209 के अंतर्गत मामला सेशन न्यायालय को सुपुर्द कर दिया जाता है। मजिस्ट्रेट द्वारा क्षमादान संबंधी शक्ति का प्रयोग विरोधी पक्षकार के आवेदन पर न करते हुए विधि के प्रति स्थापित सिद्धांतों के आधार पर किया जाना चाहिए। इस प्रकार से क्षमादान की शक्ति का प्रयोग आवेदनों के आधार पर नहीं किया जाता है। अभियोजन पक्ष उस सरकारी गवाह को पेश करता है जिसे क्षमादान दिलवाया जाना है। सरकारी गवाह, जिसे इस आधार पर समाधान किया गया हो कि वह मामले से संबंधित सभी तथ्य सरकार अभियोजकों को सही-सही बता देगा, अभियुक्त नहीं रह जाता है, बल्कि उसकी स्थिति साक्षी की तरह हो जाती है। न्यायालय द्वारा सरकारी गवाह को क्षमादान करने का उद्देश्य अभियुक्त का एक साक्षी के रूप में साक्ष्य लेना होता है। यह तथ्य की अभियुक्त ने धारा 164 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत संस्वीकृति का कथन किया है धारा 306 के अधीन क्षमादान करने के विरुद्ध नहीं होगा।


 

Add Rating and Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment
CAPTCHA

Your Comments

Side link

Contact Us


Email:

Phone No.