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अदालत में फर्जी वसीयत को कैसे चैलेंज किया जा सकता है

पूरब टाइम्स। वसीयत किसी भी व्यक्ति की अंतिम इच्छा है। अगर किसी व्यक्ति ने कोई धन कमाया है और ऐसा धन उसकी चल अचल संपत्ति में बंटा हुआ है तब वह अपने जीवनकाल में ऐसी संपत्ति के संबंध में वसीयत कर सकता है। वसीयत का अर्थ होता है किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में ही उसकी संपत्ति के संबंध में कोई निर्णय लेना और ऐसे निर्णय में यह उल्लेख हो कि उसके मर जाने के बाद उसकी संपत्ति किसे दी जाए। 
कोई भी व्यक्ति अपनी कमाई हुई संपत्ति को किसी भी व्यक्ति को या संस्था वसीयत कर सकता है। जब तक वह व्यक्ति जीवित रहता है तब तक संपत्ति उस व्यक्ति की होती है और जब उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तब संपत्ति उसके द्वारा तय किये गए व्यक्ति को दे दी जाती है। जब कोई व्यक्ति बगैर वसीयत किए मर जाता है तब उसकी संपत्ति का बंटवारा उत्तराधिकार कानून के ज़रिए होता है।

इन आधारों पर वसीयत को फ़र्ज़ी साबित किया जा सकता है। 
इच्छा के विरूद्ध वसीयत --अगर वसीयत के तथ्य ऐसे है कि देखने से ही लिखने वाली की इच्छा के विरुद्ध प्रतीत होती है तब उसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है। इच्छा के विरुद्ध वसीयत तब होती है जब व्यक्ति लिखना नहीं चाहता है और उससे वसीयत लिखवा ली गई है। 

किसी प्रभाव में लिखी गई वसीयत-- अगर निष्पादक से वसीयत किसी असम्यक असर में लिखवाई गई है तब ऐसी वसीयत का भी कोई वेलिडेशन नहीं होता है। असम्यक असर वह होता है जिसमे लिखने वाला जिस व्यक्ति के हित में वसीयत लिखी जा रही है उसके असर में हो। जैसे किसी व्यक्ति के पांच बच्चे हैं और उस व्यक्ति ने अपनी वसीयत किसी एक बच्चे के नाम लिख दी और उसने जिस व्यक्ति के नाम पर वसीयत लिखी है वह व्यक्ति लिखने वाले के साथ ही रहता था। अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के साथ रह रहा है तब यह संभव है कि वह उसकी इच्छा को अधिक शासित कर सकता है। इसलिए वह जिस व्यक्ति की संपत्ति है उससे कुछ भी लिखवा सकता है, ऐसी सहमति स्वतंत्र सहमति नहीं मानी जाती है।

बीमार व्यक्ति से वसीयत लिखवाना --अगर निष्पादक एक बीमार व्यक्ति है और उसे किसी भी बात का होश नहीं रहता है एवं ऐसे बीमार व्यक्ति से कोई वसीयत लिखवा ली गई है, तब ऐसी वसीयत को वैध नहीं माना जाता। यह वसीयत भी अवैध होती है क्योंकि किसी बीमार व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता लगभग समाप्त हो जाती है और वह कोई भी ठीक तरह का निर्णय नहीं ले पाता है। ऐसी स्थिति में उसे कोई भी समझ नहीं होती है कि वह कैसा निर्णय ले रहा है और इस निर्णय के परिणाम क्या होंगे।

अमूमन देखने में आता है कि लोग अपने बीमार माता-पिता से अपने नाम पर वसीयत लिखवा लेते हैं। माता-पिता यह भी नहीं समझ पाते हैं कि उन्होंने किन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं। क्योंकि वसीयत एक कोरे कागज पर भी मान्य है, उसके रजिस्ट्रेशन की कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए ऐसे दस्तावेज को तो कोई भी व्यक्ति घर पर एक कोरे कागज पर हस्ताक्षर करके लिख सकता है।

गवाहों का आधार-- किसी भी वसीयत में दो गवाहों की आवश्यकता होती है। यह गवाह यह साबित करते हैं कि वसीयत उनके सामने लिखी गई थी और लिखने वाले ने ऐसी वसीयत को पढ़ कर सुनाया भी था। उसके बाद उन लोगों ने उस वसीयत पर हस्ताक्षर किए। जिन लोगों के हस्ताक्षर किए हैं उन लोगों का जीवित होना भी जरूरी होता है। अगर ऐसे व्यक्तियों के हस्ताक्षर गवाह के रूप में ले लिया जाए हैं जो पहले से बीमार थे या वृद्ध थे जिनके जल्दी मर जाने की संभावना थी तब भी वसीयत संदेह के घेरे में आ जाती है। 

ऐसी वसीयत को अदालत में चुनौती दी जा सकती है। वसीयत में गवाहों का आधार एक महत्वपूर्ण आधार होता है, यह भी देखा जाता है कि कोई वसीयत में जिन गवाहों को लगाया गया है वह गवाह जिस व्यक्ति के लिए वसीयत लिखी गई है उस व्यक्ति से क्या रिश्ता रखते हैं। अगर गवाह ऐसे हैं जो जिस व्यक्ति के हित में वसीयत लिखी गई है उसके रिश्तेदार या मित्र हैं, तब भी न्यायालय यह मानता है कि वसीयत फर्जी हो सकती है।

वसीयत का कंटेंट-- वसीयत का कंटेंट भी उसकी वैधता का एक प्रमुख आधार है। अगर कोई वसीयत में किन्ही उत्तराधिकारियों को बेदखल किया गया है और ऐसी बेदखली क्यों की गई है, इस बात की जानकारी नहीं दी गई है, उन कारणों का उल्लेख नहीं किया गया है जिन कारणों से कुछ उत्तराधिकारियों को संपत्ति नहीं दी गई है तब भी वसीयत फर्जी मानी जा सकती है। अगर किसी व्यक्ति ने कुछ उत्तराधिकारियों को संपत्ति देने से इनकार किया है तब ऐसे इनकार के आधार भी बताया जाना चाहिए। 

जैसे कि अगर कोई संतान या उत्तराधिकारी जिस व्यक्ति की संपत्ति है उसके प्रति ठीक आचरण नहीं रखता है या फिर वह पथभ्रष्ट हो चुका है या उसने धर्म परिवर्तन कर लिया है या अनुचित कार्यों में संलिप्त रहता है इत्यादि। यह सभी ऐसे कारण है जो किसी भी व्यक्ति को संपत्ति नहीं दिए जाने के आधार बन जाते हैं। इसलिए वसीयत में यह भी देखा जाता है कि जिसे संपत्ति नहीं दी गई है तो क्यों नहीं दी गई है।

पागल व्यक्ति द्वारा वसीयत 
किसी भी पागल व्यक्ति द्वारा कोई वसीयत नहीं की जा सकती है क्योंकि एक पागल व्यक्ति को अपने संबंध में कोई भी निर्णय लेने की क्षमता नहीं होती है। कानून पागल व्यक्ति को वसीयत करने से निवारित करता है। एक पागल व्यक्ति का हित उसके संरक्षक बेहतर जानते हैं, इसलिए एक पागल व्यक्ति वसीयत नहीं कर सकता है। ऐसे व्यक्ति से वसीयत करवा ली गई है जो मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है तब भी वसीयत को अदालत में चुनौती देकर अवैध घोषित करवाया जा सकता है। 

हमें यह बात ध्यान देना चाहिए कि वसीयत का संबंध उसके रजिस्टर्ड होने से नहीं है। अगर एक वसीयत रजिस्टर्ड करवा ली गई है फिर लिखने वाले व्यक्ति ने कोई दूसरी वसीयत कोरे कागज पर लिख दी, तब दूसरी वाली वसीयत वैध होगी और पहले वाली वसीयत भले ही रजिस्टर्ड है फिर भी उसे कोई बल प्राप्त नहीं होगा। क्योंकि वसीयत के मामले में यह कानून है कि कोई भी व्यक्ति अपनी वसीयत को कभी भी बदल सकता है। कोई भी वसीयत अंतिम वसीयत ही होती है। व्यक्ति ने मरने से ठीक पहले जिस वसीयत को लिखा है उस ही वसीयत को अंतिम वसीयत माना जाता है, अब भले वह कोरे कागज पर हो।

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