बस्तर के पुरातात्विक संग्रहालय उपेक्षित,यहां 5वीं-14वीं शताब्दी तक की मूर्तियां
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की पारंपरिक रस्मों को देखने के लिए हजारों सैलानी जगदलपुर पहुंच रहे हैं। लेकिन, बस्तर के पुरातात्विक धरोहर की जानकारियां लोगों तक पहुंचाने के लिए जिला पुरातत्व संग्रहालय प्रबंधन ने कोई तैयारी नहीं की है। इसलिए बस्तर के सबसे बड़े महोत्सव के समय भी संग्रहालय उपेक्षित पड़ा है। इस मामले पर अब छत्तीसगढ़ राज्य पुरातत्व और संस्कृति समिति के सदस्य हेमंत कश्यप ने संग्रहालय में स्थाई अधिकारी नियुक्त करने तथा बस्तर धरोहर को प्रतिबिंबित करने वाला विभागीय फोल्डर जारी करने की मांग की है।
बस्तर की सांस्कृतिक, कलात्मक, साहित्यिक गतिविधियों को सहेजने के लिए जहां जिला प्रशासन के सहयोग से आसना में बादल और दलपत सागर के पास बस्तर आर्ट गैलरी प्रारंभ की गई है। जिसकी काफी चर्चा भी है। वहीं बस्तर का सबसे बड़ा पुरातत्व संग्रहालय अधिकारियों की मनमानी का अड्डा का केंद्र बना हुआ है। सिरहासार भवन के पास जिस स्थान पर जिला पुरातत्व संग्रहालय का विशाल भवन है यहां पर कभी छत्तीसगढ़ के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर गैंदसिंह का बाड़ा (आवास) हुआ करता था। जो परलकोट बाड़ा के नाम से चर्चित था।
5वीं से 14वीं शताब्दी तक की मूर्तियां
इस संग्रहालय में पांचवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी तक की 200 से ज्यादा मूर्तियों को रखा गया है। इसके अलावा यहां के लॉकर में नल, मौर्य युग से लेकर मुगल काल के सोने-चांदी के सैकड़ों दुर्लभ सिक्के बंद हैं। यहां की दीवारों में पूरे बस्तर संभाग के एतिहासिक स्थलों की शानदार तस्वीरें लगी हैं। लेकिन, प्रचार-प्रसार के अभाव में जानकारी लोगों तक नहीं पहुंच रही है। लगभग 35 साल पुराने संग्रहालय के पास खुद का एक फोल्डर तक नहीं है।
शोधकर्ता करते हैं अध्ययन - हेमंत
छत्तीसगढ़ राज्य संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के सदस्य हेमंत कश्यप बताते हैं कि जगदलपुर का जिला संग्रहालय वनांचल की महत्वपूर्ण धरोहर है। यहां संग्रहित वस्तुओं का अध्ययन बस्तर विश्वविद्यालय के शोधकर्ता कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर यहां के अधिकारी ही संग्रहालय के प्रति उदासीन है। यहां के प्रभारी अमृतलाल पैकरा रायपुर में बैठते हैं और कई महीनों से बस्तर नहीं आए हैं। कोरोना के बाद संग्रहालय में किसी भी प्रकार की सांस्कृतिक और पुरातात्विक गतिविधियां आयोजित नहीं की गई है।
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