आरएसएस के कार्यकारिणी सदस्य राम माधव ने पुस्तक 'पार्टिशंड फ्रीडम पर खुलकर चर्चा की
रायपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकारिणी सदस्य व भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने बुधवार को अपनी पुस्तक 'पार्टिशंड फ्रीडम पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक देश के दो विभाजन और दो नेताओं की कहानी बयां करती है। जब देश में एक राज्य अर्थात बंगाल में अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई तो पूरा देश खड़ा रहा। मगर 35 वर्षों के बाद ऐसा क्या हो कि गया कि पूरा देश विभाजित हो गया। भारत से पाकिस्तान अलग हो गया और देश मौन रह गया। यह पुस्तक इस पर ही चर्चा करती है।
राम माधव रायपुर के समता कालोनी स्थित अग्रसेन कालेज के आडिटोरियम में 'पार्टिशंड फ्रीडम" के विमोचन अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत के विभाजन में करीब तीन लाख लोगों की मौत हुई थी। लोग रातों-रात अपने ही देश में पराये हो गए थे। हमें बताया ही नहीं गया कि क्या हुआ है। एक विभाजन 1905 में बंगाल का करने की कोशिश ब्रिटिश ने की थी और दूसरा विभाग भारत और पाकिस्तान के रूप में हुआ। उन्होंने कहा कि भारत का विभाजन तर्कहीन था और यह जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था।
इससे महात्मा गांधी के सपने बिखर गए, जो राष्ट्र को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के खिलाफ थे। महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं तो भाई-भाई संपत्ति का बंटवारा करने का विरोधी नहीं हूं। मगर भारत माता हमारी मां है। मां को विभाजित करने पर सहमत नहीं हूं। कार्यक्रम में उपस्थित पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारत के विभाजन में बहुत त्रासदी हुई थी। कुछ दिन पहले मैंने भारत विभाजन से संबंधित प्रदशर््ानी देखी तो वहां उस त्रासदी का अहसास हुआ। कार्यक्रम का आयोजन छत्तीसगढ़ यंग थिंकर्स फोरम (इंडिया फाउंडेशन के छत्तीसगढ़ प्रकल्प) ने किया था।
कांग्रेस ने जिस इतिहास को छिपाया, उसे उजागर कर रहे हैं
राम माधव ने कहा कि भाजपा कोई नया इतिहास नहीं लिखना चाहती। कांग्रेस के काल में जिन इतिहास को छिपाने की कोशिश हुई थी, जो पन्न्े विलुप्त हो चुके थे, जैसे सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, वीर सावरकर, ऐसे लोगों के बारे में भाजपा जानकारी दे रही है। जब अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन किया तो पूरा देश उठ खड़ा हुआ था। अंग्रेजों को देश के सामने झुकना पड़ा था, लेकिन बाद में मोहम्मद अली जिन्न्ा ने देश का विभाजन करवा लिया। जिन्न्ा ने 1904 में कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया था। जिन्न्ा गोपाल कृष्ण गोखले के शिष्य थे। खुद को मुस्लिम गोखले कहते थे। गांधीजी को भारत आने के बाद पहला पद ही खिलाफत आंदोलन के अध्यक्ष के रूप में मिला। खिलाफत आंदोलन से राजनीतिक सफर शुरू हुआ इसलिए वह मुस्लिम लीग के तुष्टिकरण में लगे रहे।
यह दो सबक की किताब
संघ के कार्यकारिण्ाी सदस्य माधव ने कहा कि ये किताब किसी देश के खिलाफ या किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, लेकिन दो सबक की किताब है। यह सीख देती है कि खुशामद की राजनीति नहीं करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि एक बार गांधीजी सावरकर से मिलने गए। इस अवसर पर सावरकर ने गांधीजी से कहा कि आप मुस्लिम लीग की खुशामद मत करो। मुस्लिम लीग को बताओ कि या तो साथ आजादी के लिए लड़े या फिर हम अकेले लड़ेंगे। लेकिन गांधीजी नहीं माने। गांधी, नेहरू सब देश के विभाजन के खिलाफ थे, लेकिन डटकर खड़े नहीं हुए। जब नेता थक जाते हैं, जनता देश के लिए लड़ने के लिए तैयार नहीं होती तो समझो कि नई मुसीबत आने वाली है। यही भारत के विभाजन के समय हुआ था।
वीर सावरकर ने कोई माफी नहीं मांगी
राम माधव ने कहा कि महात्मा गांधी ने सावरकर को जेल से बाहर लाने के लिए प्रयास किया। वाइसराय से बात की। सावरकर के भाइयों को मनाया। गांधीजी ने सावरकर को आजादी की लड़ाई दूसरे तरीके से लड़ने को मनाया। बस यही पत्र सावरकर ने लिखा है। वामपंथी उसे माफीनामा के रूप में प्रचारित करते हैं।
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