उद्धव ठाकरे vs एकनाथ शिंदे: कैसे होगा 'असली शिवसेना' का फैसला?
मुंबई। महाराष्ट्र की सियासी जंग में मंगलवार को बड़ा दिन साबित हुआ। एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कैंप की याचिका को लेकर सुनवाई पर रोक की मांग कर रही उद्धव ठाकरे की याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को 'असली शिवसेना' का फैसला करने के लिए कहा है। अब आयोग पार्टी के 'धनुष-बाण' चुनाव चिह्न पर भी फैसला लेगा।
इधर, गुजरात पहुंचे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने भी साफ कर दिया है कि मामले में आयोग निष्पक्ष रहेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि शिवसेना और चुनाव चिह्न के दावे पर फैसला 'बहुमत' के आधार पर लिया जाएगा। दरअसल, चुनाव चिह्न से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए आयोग इलेक्शन सिम्बल्स (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 की मदद लेता है। इसके पैराग्राफ 15 के जरिए आयोग दो गुटों के बीच में पार्टी के नाम और चिह्न के दावे पर फैसला लेता है।
आसान भाषा में पूरी प्रक्रिया समझें
किसी एक गुट को मान्यता देने से पहले किन बातों पर विचार किया जाता है?
पैराग्राफ 15 के तहत चुनाव आयोग ही एकमात्र अथॉरिटी है, जो विवाद या विलय पर फैसला ले सकती है। प्राथमिक रूप से चुनाव आयोग राजनीतिक दल के अंदर संगठन स्तर और विधायी स्तर पर दावेदार को मिलने वाले समर्थन की जांच करता है।
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