देश के आर्थिक हालात सुधारने पी एम रानिल विक्रमसिंघे ने वित्त मंत्रालय अपने हाथ में लिया, राष्ट्रपति ने दिलाई शपथ
श्रीलंका। आर्थिक संकट से जुझ रहे श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने वित्त मंत्री के रूप में शपथ ली है। ये पद संभालने के बाद उनका सबसे पहले काम देश को संकट से बाहर निकालना होगा। इसके लिए वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ बातचीत करेंगे।दरअसल, राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने विक्रमसिंघे की कैबिनेट का विस्तार करते हुए 24 मई को नए मंत्रियों को इसमें शामिल किया, लेकिन उन्होंने किसी वित्त मंत्री की नियुक्ति नहीं की थी।
देश की स्थिति सुधारने लिए ये फैसले
हाल ही में आर्थिक संकट से उबरने के लिए श्रीलंका की रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने सरकारी एयरलाइन बेचने का फैसला किया। इसके साथ ही सरकार ने नई करेंसी छापने का भी फैसला लिया। एक साक्षात्कार में, विक्रमसिंघे ने कहा था कि वे 6 हफ्ते में अंतरिम बजट पेश करेंगे और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में कटौती करेंगे।
12 मई को बने थे श्रीलंका के नए PM
73 साल के रानिल को देश का सबसे अच्छा पॉलिटिकल एडमिनिस्ट्रेटर और अमेरिका समर्थक माना जाता है। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें यूनिटी गवर्नमेंट के प्रधानमंत्री के तौर पर पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। वो पहले भी पांच बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं।
अब तक ये हुआ
कुछ महीने पहले देश में आर्थिक संकट शुरू हुआ। अब दिवालिया होने का खतरा है। धीरे-धीरे यह साफ होता चला गया कि राजपक्षे परिवार ने अपने सियासी रसूख का बेहद गलत इस्तेमाल किया। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे। कैबिनेट मिनिस्टर्स में भी घोर भाई-भतीजावाद। देश दिन-ब-दिन गर्त में जाता रहा और राजपक्षे परिवार ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जीता रहा।
पानी जब गले तक आ गया तो राष्ट्रपति गोटबाया ने भाई महिंदा को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की अगुआई में नई यूनिटी सरकार बनी।
श्रीलंका में गहराया संकट
1948 में आजादी के बाद यह श्रीलंका का सबसे गंभीर आर्थिक संकट माना जा रहा है। रोजमर्रा की जरूरत के सामानों के दाम आसमान पर हैं, खाने-पीने के सामान का संकट और ईंधन भी आसानी से नहीं मिल रहा है। इन सबके चलते श्रीलंका के आम लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं।
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