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छत्तीसगढ़ में क्यों हो रहा है लोगों का सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार? हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी कर राज्य में विभिन्न समुदायों के लोगों के 'सामाजिक बहिष्कार' पर दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब मांगा है। दरअसल अंतरजातीय विवाह,किसी दूसरे धर्म में शामिल होने पर या व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण भी समुदाय या गांव के लोग व्यक्ति या परिवार का सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार कर देते हैं। इस मामले में दायर एक याचिका पर उच्च न्यायालय ने जवाब मांगा है।

10 सप्ताह के भीतर मांगा जवाब
मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार गोस्वामी और न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की खंडपीठ ने बुधवार को राज्य के मुख्य सचिव, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), कानूनी सेवा प्राधिकरण, छह के कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों (एसपी) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। संबंधित पुलिस थानों के जिलों और थाना प्रभारी (एसएचओ) से भी 10 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

इन जिलों का है जिक्र
जनहित याचिका, दो संगठनों- गुरु घासीदास सेवादार संघ और कनूनी मार्गदर्शन केंद्र द्वारा दायर की गई थीं। जनहित याचिका में 6 जिलों की बात का जिक्र है जिनमें रायपुर, जांजगीर-चांपा, धमतरी, कांकेर, रायगढ़ और बलौदाबाजार शामिल हैं। जनहित याचिका के अनुसार, अंतरजातीय विवाह, धार्मिक स्वतंत्रता या व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण कई लोग अपने समुदाय या गांव में सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार से पीड़ित हैं।

अजीविका कमाने में आ रही दिक्कत
याचिकाकर्ताओं के वकील रजनी सोरेन ने कहा कि लगभग सभी मामलों में प्रशासन और पुलिस इन मामलों में उचित कार्रवाई नहीं कर रही है जिसके कारण लोगों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है और सामाजिक बहिष्कार के माध्यम से आजीविका कमाने के साधन से वंचित हैं।

बहिष्कार पर नियंत्रण की मांग
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है ऐसी खराब प्रथा को खत्म करने के लिए एक विशेष कानून की आवश्यकता है, जैसा कि महाराष्ट्र में किया गया है और हाईकोर्ट से इस बहिष्कार के रोकथाम और नियंत्रण, आपराधिक कार्यवाही, पीड़ितों के पुनर्वास के संबंध में उपायों का उल्लेख करते हुए दिशानिर्देश तैयार करने का आग्रह किया।

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