बहुला चतुर्थी का व्रत रखकर की खुशहाली की कामना, गाय और बछड़े की पूजा की गई

रायपुर। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर माताओं ने अपने संतान की रक्षा की कामना करते हुए बहुला चतुर्थी का व्रत रखा। गाय-बछड़े की प्रतिमा की पूजा करके संतान की खुशहाली की कामना की और कथा सुनीं। कथा के पश्चात उबला चना, उड़द-मूंग का बड़ा, पपरिया का सेवन करके व्रत का पारणा किया।
लिली चौक पुरानी बस्ती स्थित श्री लक्ष्मी नारायण बराई मंदिर में माताओं ने पूजा-अर्चना की। माताओं ने मिट्टी और चांदी से निर्मित शेर, गाय, बछड़ा और भगवान शिव, श्रीकृष्ण की प्रतिमा की पूजा की। भैंस का दूध, घी, जवा के आटे का प्रसाद बनाकर भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण किया।
भगवान ने ली थी गाय की परीक्षा
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला ने बहुला चतुर्थी व्रत के महत्व के बारे में बताया कि भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन बहुला नाम की गाय जंगल में चरने के लिए गई। जंगल में गाय को शेर ने घेर लिया। गाय ने कहा कि मुझे छोड़ दो, मैं अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस आ जाऊंगी। गाय के निवेदन पर शेर ने उसे जाने दिया। गाय अपने बाड़े में पहुंचकर बछड़े को दूध पिलाने लगी।
मां को उदास देखकर बछड़े ने कारण पूछा। गाय ने शेर को दिए अपने वचन के बारे में सच बता दिया। मां की बात सुनकर बछड़े ने कहा कि मैं भी जीकर क्या करूंगा। गाय-बछड़ा दोनों शेर के पास पहुंचे। गाय ने कहा- पहले मुझे खत्म करो, बछड़े ने कहा नहीं, पहले मुझे खत्म करो। गाय- बछड़े की ममता देखकर शेर का रूप धारण किए श्रीकृष्ण अपने असली रूप में आ गए। भगवान श्रीकृष्ण बहुला गाय के वचन की परीक्षा ले रहे थे। श्रीकृष्ण ने यह लीला भाद्रपद चतुर्थी को रची थी, तबसे बहुला गाय की पूजा करने की परंपरा प्रारंभ हुई। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की इस लीला को लोग आज इस रूप में मानते हैं।
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