आचार्यश्री विशुद्ध सागर ने प्रवचन में कहा, अपने बच्चों को केवल धन-संपत्ति नहीं संस्कार भी दो
रायपुर। सन्मति नगर फाफाडीह में ससंघ विराजित आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि अपने बच्चों को केवल धन संपत्ति नहीं संस्कार भी दो। जिसके पिता ने मृत्यु के पहले अपने बच्चों को सब कुछ दे दिया लेकिन पूजा,धर्म, ध्यान,शास्त्र का ज्ञान नहीं दिया,गुरु की सेवा, दया नहीं सिखाई तो पूरी संपत्ति देने के बाद भी वह पिता अपने बच्चों को कंगाल करके जाएगा। जिस पिता ने केवल धर्म और संस्कार अपने बच्चों को दिया है और उस पिता की अंतिम सांस निकलने वाली हो और वह अपने बच्चों से कहे कि मैं तुम्हें कुछ नहीं दे पाया,तो पिता के चरण छू लेना और कहना कि आपने मुझे धर्म और गुरु के चरण पकड़ना सिखा दिया, सारे संसार की संपत्ति दे दी, मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
आचार्यश्री ने कहा कि जगत में ऐसे लोग हैं जिनके पास सब कुछ है फिर भी मांगने और रोने की आदत नहीं जाती है। जिस पिता ने आपको मनुष्य पर्याय दे दी है इससे बड़ी संपत्ति और क्या चाहिए। जिस पिता ने अपने बच्चों को उंगली पकड़ कर मंदिर जाना सिखाया, धर्म-शास्त्र से जुड़ाव किया,गुरु मुनियों का सम्मान करना सिखाया, यदि वह बेटा कहे कि मुझे कुछ नहीं दिया तो उससे बड़ा अभागा और कोई हो नहीं सकता। क्या तुम्हारे पिता नहीं दे पाए या तुम अभागे ले लिए नहीं पाए। जगत के पिता धन देकर यदि धर्म की राह नहीं बताए तो नर्क दे गए। संपत्ति पाकर बेटा विषयों में डूब गया तो वह नरक ही भागेगा। जो अपनी संतान को पशु और नारकीय बनाना नहीं चाहते, अपने बेटों को गड्ढे में नहीं चाहते, तो आज से ही संस्कार देना शुरू कर दो।
आचार्यश्री ने कहा कि आज जैसे कबाड़ वस्तु को भी ठीक कर वापस उपयोग में लाया जा रहा है, ऐसे ही जो टूटे-फूट कषायों में पड़े हुए हैं वे संयम के कारखानों में आ जाए तो फिर रिसाइकल हो जाएंगे। संसार में आज ऐसी घटना घट रही लोग अपने बच्चों तक को कबाड़ समझ रहे हैं। अपने बच्चों को लोग इधर-उधर फेंक रहे हैं। अपनी संतान कबाड़ दिखने लग जाए तो किसी धर्मात्मा को दे देना लेकिन उसके टुकड़े मत करना। आज कबाड़ी भी कबाड़ को सिर में रख कर ले जाता है वह तो आपके बच्चे हैं।
आचार्यश्री ने कहा कि जगत की सत्ता और स्वयं की सत्ता सत्य है। यदि एक भी सत्ता का विनाश हो गया तो दोनों नहीं रहेंगे। जितने बाहरी लोक है अंतरंग में वही आपका आनंद है। स्व के प्रभाव के परिणाम को जीव नहीं समझ सका और अपने अंतरंग में विशिष्ट स्थान बनाया उसका नाम द्वेष बुद्धि है। विराटता तुम्हारे पास है परंतु द्वेष बुद्धि को कैसे स्थापित कर लिया। जीवन में व्यक्ति यदि भूल कर लेता है तो उसे मस्तिष्क में विचार करना चाहिए कि भूल कहां से प्रारंभ हुई। तत्काल उस भूल को सुधार लेना चाहिए। कहीं भूल इतनी गंभीर न हो जाए कि सब विनाश हो जाए।
आचार्यश्री ने कहा कि हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे यह दुनिया कहेगी,लेकिन परतंत्र हुए क्यो यह विचार भी करना चाहिए। आखिर हमको स्वतंत्रता दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी। सत्य यही है कि हमारे लोग ही अंग्रेजों से मिल चुके थे इस कारण परतंत्र हुए और आज स्वतंत्रता दिवस मनाना पड़ रहा है। आपस में भारत के राजा महाराजा लड़ना प्रारंभ किए और दूसरे ने फायदा उठाया फूट डालो और राज करो। अभी भी न सीख पाए तो श्रीलंका बन जाओगे। दूसरे की कंपनियों को भारत में लाओगे तो धीरे-धीरे पैर तो जमाएगी ही। वर्तमान की सुविधा में जो जिएगा भविष्य में वह राज्य खोएगा। स्वतंत्रता दिवस आपको उत्साह से मनाना चाहिए कि हम भिन्न देश की परतंत्रता से बचे हैं। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए जिस कारण से देश परतंत्र हुआ था वह कारण क्या था ? आपस का विषमवाद, छोटे बड़ों का भेदभाव,अंग्रेजों से मिलीभगत इसके अलावा कुछ नहीं हुआ।
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